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जैनागम स्तोक संग्रह तारे होते है, जिसका नाई की पेटी समान आकार होता है । गाय का दूध पीकर चलने पर सौभाग्य की वृद्धि होती है तथा सत्कार मिलता है। ११ रोहिणी न० के पाँच तारे होते है । गाडे के ऊंट समान इसका आकार होता है । इस समय हरे मूग खाकर चलने पर मार्ग मे यात्रा के योग्य सर्व सामग्री अल्प परिश्रम से प्राप्त हो जाती है। यह नक्षत्र दीक्षा योग्य है । १२ मृगशीर्ष न० के तीन तारे होते है। इसका आकार हिरण के सिर समान होता है । इलायची खाकर चलने पर अत्यन्त लाभ होता है। यह न० नये विद्यार्थी की तथा नये शास्त्रों का अभ्यास करने वालो की ज्ञान वृद्धि करने वाला है । १३ आर्द्रा न० का एक ही तारा है । इसका रुधिर के बिन्दु समान आकार है। इस समय नवनीत (माखन) खाकर चलने से मरग, शोक, सन्ताप तथा भय एव चार फल की प्राप्ति होती है, परन्तु ज्ञान अभ्यासियो को सत्वर उत्तम फल देनेवाली निकलता है और वर्षा ऋतु के मेघ-बादल की अस्वाध्याय दूर करता है । १५ पुनर्वसु न० के पाँच तारे है । इसका आकार तराजू के समान है। घृत-शक्कर खाकर चलने पर इच्छित फल मिलते है । १५ पुष्य न० के तीन तारे है, जिसका आकार वर्द्ध मान (दो जुड़े हुए रामपात्र) समान होता है । खीर खाण्ड खाकर चलने से अनियमित लाभ की प्राप्ति होती है और इस नक्षत्र में किये हुए नये शास्त्र का अभ्यास भी बढ़ता है । १६ अश्लेषा न० के छः तारे है । इसका आकार ध्वजा समान है । इस समय सीताफल खाकर चले तो प्राणान्त भय की सम्भावना होती है, परन्तु यदि कोई ज्ञान, अभ्यास, हुनर, कला, शिल्प, शास्त्र आदि के अभ्यास में प्रवेश करे तो जल तथा तेल के विन्दु समान उसके ज्ञान का विस्तार होता है । १७ मघा न० के सात तारे होते है, जिनका आकार गिरे हुए किले की दीवार के समान है। केसर खाकर चलने पर बुरी तरह से आकस्मिक मरण होता है । १८ पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र के दो तारे होते है । इनका आकार आधे पलङ्ग जैसा होता है । इस समय कोठिवड़े (फल) की शाक खा