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गर्भ विचार
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दिवस मे चावल के धोवन समान तोलदार हो जाता है । चौदहवे दिन जल के परपोटे समान आकार में आता है । इकवीश दिन में नाक के श्लेश्म के समान और 'अठाईस दिन में अडतालीस मासे वजन में हो जाता है । एक महीने में बेर की गुठली समान अथवा छोटे आम की गुठली समान हो जाता है । इसका वजन एक करखरण कम एक पल का होता है, पल का परिमाण - सोलह मासे का एक करखरण और चार करखण का एक पल होता है। दूसरे महीने कच्ची केरी समान, तीसरे महीने पक्की केरी (आम) समान हो जाता है । इस समय से गर्भ प्रमाणे माता को डोहला (दोहद) भाव उत्पन्न होने लगता है और यह क्रम फलानुसार फलता है । इसके द्वारा गर्भ अच्छा है या बुरा इसकी परीक्षा होती है । चौथे महीने कणक के पिण्डे के समान हो जाता है । इससे माता के शरीर की पुष्टि होने लगती है । पाचवे महीने मे पाँच अकुरे फुटते है । जिनमें से २ हाथ, २ पांव, ५ वा मस्तक छट्ट महीने रुधिर, रोम, नख और केश की वृद्धि होने लगती है । कुल साढे तीन क्रोड़ रोम होते है जिनमे से दो कोड और इकावन लाख गले ऊपर व नवाणु लाख गले के नीचे होते है । दूसरे मत से - इतनी सख्या के रोम गाडर के कहलाते है । यह विचार उचित ( वाजबी ) मालूम होता है । एकेक रोम के उगने की जगह मे १ ॥ || से कुछ विशेष रोग भरे हुए है । इस हिसाब से पौने छ: करोड़ से अधिक रोग होते है । पुण्य के उदय से ये ढके हुए होते है । यही से रोम आहार की शुरुआत होने की सम्भावना है । तत्व तु सर्वज गम्य' । यह आहार माता के रुधिर का समय-समय लेने में आता है और समय-समय पर गमता है। सातवे महीने सात सौ सिराये अर्थात् रसरणी नाडियाँ बधती है । इनके द्वारा शरीर का पोषण होता है और इससे गर्भ को पुष्टि मिलती है। इनमें से स्त्री को ६७० ( नाडिये ), नपुसक को ६८० और पुरुष पांचसो मांस की पेशियां बंधती है, जिनमें से स्त्री के तीस और
को ७०० पूरी होती है ।