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गर्भ विचार
३५७ अनियमित रूप से विषय का सेवन करे अथवा व्यभिचारिणी बनकर मर्यादा रहित पर पुरुष का सेवन करे तो वही स्त्री वॉझ होती है । उसके गर्भ नही रहता ऐसी स्त्री के शरीर मे ( झेरी ) ( जहरी ) जीव उत्पन्न होते है कि जिनके डडू से विकारो की वृद्धि होती है और इससे वह स्त्री देवगुरु धर्म व कुल मर्यादा तथा शियल व्रत के लायक नहीं रह सकती। ऐसी स्त्री का स्वभाव निर्दय तथा असत्यवादी होता है । जो स्त्री दयालु तथा सत्यवादी होती है वह अपने शरीर को यातना करती है, कामवासना पर काबू रखती है। अपनी प्रजा की रक्षा के निमित्त सांसारिक सुखो के अनुराग की मर्यादा करतो है । इस कारण से ऐसी स्त्रिया पुत्र-पुत्री का अच्छा फल प्राप्त करती है । केवल रुधिर से या केवल विन्दु से प्रजा प्राप्त नहीं हो एकती। ऐसे ही ऋतु के रुधिर सिवाय अन्य रुधिर प्रजा प्राप्ति के निमित्त काम नही आ सकता । एक ग्रन्थकार कहते है कि सूक्ष्म रीति से सोलह दिन पर्यत ऋतुस्राव होता है। यह रोगी स्त्री के नही. परन्तु निरोगी स्त्री के शरीर मे होता है और यह प्रजा प्राप्ति के योग्य कहा जाता है।
उक्त दिनो मे से प्रथम तीन दिनो का न थकार निषेध करते है। यह नीति मार्ग का न्याय है और इस न्याय को पुण्यात्मा जीव स्वीकार करते है । अन्य मतानुसार चार दिन का निषेध है, क्योकि चौथे दिन को उत्पन्न होने वाला जीव अल्प समय तक ही जीवन धारण कर सकता है। ऐसा जीव शक्तिहीन होता है व माता-पिता को भार रूप होता है । पाँचवे से सोलहवे दिन तक नीति शास्त्रानुसार गर्भाधारण सस्कार के उपयुक्त माने जाते है । पश्चात् एक के बाद एक दिन) का वालक उत्तरोत्तर तेजस्वी, बलवान, रूपवान, बुद्धिमान
और अन्य सर्व सस्कारो में श्रेष्ठ दीर्घायुष्य वाला तथा कुटुम्ब पालक निवडता ( होता) है। इनमे से छटठी, आठवी, दशवी, बारहवी, चौदहवी एव सम (बेकी की ) रात्रि विशेषकर पुत्री रूप फल देती