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जैनागम स्तोक सग्रह वेदनीय कर्म सोलह प्रकारे भोगवे उक्त सोलह प्रकृति अनुसार ।
वेदनीय कर्म की स्थिति-साता वेदनीय की स्थिति जघन्य दो समय की उत्कृष्ट १५ करोड़ाकरोड़ी सागरोपम की, अबाधा काल करे तो जघन्य अन्तर मुहूर्त का उत्कृष्ट १॥ हजार वर्ष का। ___ आसातावेदनीय की स्थिति जघन्य एक सागर के सात हिस्सो में से तीन हिस्से और एक पल्य के असख्यातवे भाग उणी (कम) उत्कृष्ट तीस करोड़ाकरोड़ी सागरोपम की, अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का।
४ मोहनीय कर्म का विस्तार मोहनीय कर्म के दो भेद :-१ दर्शन मोहनीय २ चारित्र मोहनीय ।
दर्शनमोहनीय की तीन प्रकृतिः-१ सम्यक्त्व मोहनीय २ मिथ्यात्व मोहनीय ३ मिश्र (सममिथ्यात्व) मोहनीय।। __ चारित्र मोहनीय के दो भेद :-१ कषायचारित्र मोहनीय २ नोकषायचारित्र मोहनीय। कषायचारित्र मोहनीय को सोलह प्रकृति, नोकषायचारित्र मोहनीय की नव प्रकृति एव २८ प्रकृति ।
कषाय चारित्र मोहनीय की १६ प्रकृति १ अनन्तानुबधी क्रोध-पर्वत की चीर समान २ , , मान-पत्थर के स्तम्भ समान
११ पर (दूसरा) को दुख देना १२ पर को शोक कराना १३ पर को झुराना १४ पर से आसू गिरवाना १५ पर को पीटना १६ पर को परिताप देना १७ बहु प्राणी भूत जीव सत्वो को दुख देना १८ शोक करना १६ झूरना २० टपक २ आसू गिराना २१ पीटना २२ परितापना करना ।