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जैनागम स्सोक सग्रह ४ असज्ञी तिर्यच पंचेद्रिय में जीव का भेद २, ११ वॉ व १२ वाँ, गुणस्थानक २ ( १-२ ), योग ४-२ औदारिक का १ व्यवहार वचन व १ कार्मरण का, उपयोग ६–२ ज्ञान २ अज्ञान २ दर्शन । लेश्या ३ प्रथम।
५ असंज्ञी मनुष्य में—जीव का भेद १ वां, ११ वां गुणस्थानक १ पहला, योग ३, २ औदारिक का, १ कार्मण का, उपयोग ३, २ अज्ञान १ अचक्षु दर्शन, लेश्या ३ प्रथम ।
वीतराग प्रमुख पांच बोल मे रहे हुए जीवो का अल्पबहुत्वः-सब से कम युगल २ इससे असंज्ञी मनुष्य असंख्यात गुणा ३ इससे असज्ञी तिर्यच पचेन्द्रिय असंख्यात गुणा ४ इससे वीतरागी अनन्त गुणा ५ इसस समुच्चय केवली विशेषाधिक ।
गुणस्थानक : १ मिथ्यात्व में-जीव का भेद १४, गुणस्थानक १ पहला, योग १३ आहारक दो छोड़कर, उपयोग ६-३ अज्ञान ३ दर्शन, लेश्या ६ ।
२ सास्वादान सम्यकदृष्टि में-जीव का भेद ६ सम्यक दृष्टि वत्, गुणस्थानक १ दूसरा, योग १३ आहारक का दो छोड़कर, उपयोग ६३ ज्ञान ३ दर्शन, लेश्या ६ ।
३ मिश्र दृष्टि में जीव का भेद १ संज्ञी का पर्याप्त, गुणस्थानक १ तीसरा, योग १०-४ मन के, ४ वचन के १ औदारिक का १ वैक्रिय का, उपयोग ६-३ अज्ञान ३ दर्शन, लेश्या ६ ।। ___ ४ अव्रती सम्यक् दृष्टि में-जीव का भेद २ संजी का । गुणस्थानक १ चौथा, योग १३ सास्वादन सम्यक् दृष्टि वत् उपयोग ६-३ ज्ञान ३ दर्शन, लेश्या ६।
५ देशव्रती (संयतासंयति ) में-जीव का भेद १-१४ वॉ, गुणस्थानक १ पांचवॉ, योग १२-२ आहारक का व १ कार्मरण का छोडकर उपयोग ६-३ ज्ञान ३ दर्शन, लेश्या ६ ।