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पुद्गल परावर्त
३११ ग्रहण करते है)। वैक्रियपने (वैक्रिय शरीर में रह कर वैक्रिय योग्य पु० ग्रहण करे) । तेजस् आदि ऊपर कहे हुए सात प्रकार से पु० जीव ने ग्रहण किये है व छोड़े है, ये भी सूक्ष्मपने और बादरपने लिये है
और छोड़े है । द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से व भाव से एव चार तरह से जीव ने पु० परावर्त किये है ।
इसका विवरण (खुलासा) नीचे अनुसार :
पु० परावर्त के दो भेद :-१ वादर २ सूक्ष्म । ये द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से व भाव से।
१ द्रव्य से बादर पु० परावर्त :-लोक के समस्त पु० पूरे किये, परन्तु अनुक्रम से नहीं। याने औदारिकपने पु० पूरे किये बिना पहले वैक्रियपने लेवे व तेजस् पने लेवे। कोई भी पु० परावर्त पने बीच में लेकर पुन. औदारिक पने के लिये हुए पु० पूरे करे एव सात ही प्रकार से बिना अनुक्रम के समस्त लोक के सव पु० को पूरे करे इसे बादर पु० परावर्त कहते है। __ २ द्रव्य से सूक्ष्म पु० परावर्त -लोक के सब पुद्गलो को औदारिक पने पूर्ण करे । फिर वैक्रिय पने, तेजस् पने एव एक के बाद एक अनुक्रम पूर्वक सात ही पु० परावर्त पने पूर्ण करे, उसे सूक्ष्म पु० परावर्त कहते है।
३ क्षेत्र से बादर पु० परावर्त :-चौदह राजलोक के जितने आकाश प्रदेश है, उन सब आकाश प्रदेश को प्रत्येक देश मे मर-मर कर अनुक्रम बिना तथा किसी भी प्रकार से पूर्ण करे ।
४ क्षेत्र से सूक्ष्म पु० परावर्त :--राजलोक के आकाश प्रदेश को अनुक्रम से एक के बाद एक १, २, ३, ४, ५, ६, ७, ८, ९, १० एवं प्रत्येक प्रदेश मे मर कर पूर्ण करे उनमें पहले प्रदेश मे मर कर तीसरे प्रदेश मे मरे अथवा पाँचवे आठवें किसी भी प्रदेश मे मरे तो पु० परावर्त