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चार कषाय
सूत्र श्री पन्नवणाजी के पद चौदहवे मे चार कषाय का थोकड़ा चला है उसमे श्री गौतम स्वामी वीर भगवान से पूछते है कि "हे भगवन् । कषाय कितने प्रकार के होते है ?" भगवान कहते है कि-हे गौतम ! कषाय १६ प्रकार के होते है।' १ अपने लिये, २ दूसरे के निमित्त, ३ तदुभया अर्थात् दोनो के लिये, ४ खेत अर्थात् खुली हुई जमीन के लिए, ५ वथ्थु कहेता ढंकी हुई जमीन के लिये, ६ शरीर के निमित्त, ७ उपाधि के लिये-८ निरर्थक, ६ जानता, १० अजानता, ११ उपशान्त पूर्वक, १२अनुपशान्त पूर्वक, १३ अनन्तानुबन्धी क्रोध, १४ अप्रत्याख्यानी क्रोध, १५ प्रत्याख्यानी क्रोध, १६ सज्वलन का क्रोध एवं १६ वे समुच्चय जीव आश्री और ऐसे ही चौवीश दण्डक आश्री। दोनों का इस प्रकार गुणा करने से १६४२५) ४०० हुए।
अब कषाय के दलिया कहते है-चणीया, उपचणीया, बान्ध्या, वेद्या, उदीरिया, निर्जर्या एव ६ ये भूतकाल, वर्तमान काल और भविष्यकाल आश्री एव ६ और ३ का गुणाकार करने से (६४३) १८ हुए। ये १८ एक जीव आश्री और १८ बहुजीव आश्री ३६ हुए। ये समुच्चय जीव आश्री और चौवीश दण्डक आश्री एवं (३६ ४ २५) ६०० हुए। ४०० ऊपर के और ६०० ये और १३०० क्रोध के, १३०० मान के, १३०० माया के और १३०० लोभ के इस तरह फुला ५२०० होते है ।