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जैनागम स्तोक संग्रह अन्तर्मुहूर्त मे ६ पर्याप्ति का बन्ध होता है यह सुन कर शिष्य को शङ्का होती है कि शास्रकार ६ पर्याप्ति का बन्ध होने मे एक अन्तर्मुहूर्त बतलाते है यह कैसे ? ___गुरु-हे वत्स ! सारा मुहूर्त दो घड़ी का होता है। इसका एक ही भेद है । परन्तु अन्तर्मुहूर्त के जघन्य मध्यम और उत्कृष्ट एवं तीन भेद होते है। दो समय से लगा कर नव समय पर्यत की जघन्य अन्तमुहूर्त कहलाती है । १ तदन्तर अन्तर्मुहूर्त दस समय की, ग्यारह समय की एव एकेक समय गिनते हुए अन्त ० के असख्यात भेद होते है। २ दो घडी (पहर) में एक समय शेष रहे, तब वह उत्कृष्ट अन्त० है। ३ छः पर्याप्ति का बन्ध होने में छः अन्त० लगते हैं । इससे जघन्य और मध्यम अन्त० समझना और अन्त मे छ: पर्याप्ति मे जो एक अन्त० लगता है उसे उत्कृष्ट समझना । उक्त छ पर्याप्ति मे से एकेन्द्रिय के चार (प्रथम) होती है । द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय, चौरिन्द्रिय व असज्ञी मनुष्य तथा तिर्यञ्च पचेन्द्रिय के पांच और सज्ञी पचे के छः पर्याप्ति होती है।
___ अपर्याप्ता का अर्थ अपर्याप्ता के दो भेद :-१ करण अपर्याप्ता, २ लब्धि अपप्तिा । करण अप० के दो भेद-त्रि-इन्द्रिय वाले पर्याय बांध कर न रहे वहाँ तक करण अप० और बांध कर रहे, तब करण पर्याप्ता कहलाती है । लब्धि अप० के दो भेद-एकेन्द्रिय से अगाकर पचे० पर्यन्त जिसके जितनी पर्याय होती है, उसके उतनी मे से एकेक की अधूरी रहे वहाँ तक लब्धि अपर्याप्ता कहलाता है और अपनी जाति की हद तक पूरी बंध कर रहे तब उसे लब्धि पर्याप्ता कहते है एवं करण तथा लब्धि पर्याप्ता के चार भेद होते है।
शिष्य-हे गुरु ! जो जीव मरता है, वो अपर्याप्ता मे मरता है अथवा पर्याप्ता मे ?