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जैनागम स्तोक सग्रह वेत का एक हाथ, दो हाथ एक कुक्षि, १६ दो कुक्षि एक धनुष्य, २० दो हजार धनुष्य का एक गाउ (कोस), २१ चार गाउ का एक योजन । कल्पना करो कि ऐसा एक योजन का लम्बा, चौडा व गहरा कुवा हो, उसमें देव-उत्तर कुरु मनुष्यो के बाल—एक २ बाल के असंख्य खण्ड करे । बाल के इन असंख्य खण्डो से तल से लगा कर ऊपर तक ठूस-ठूस कर वह कुवा भरा जावे कि जिसके ऊपर से चक्रवर्ती का लश्कर चला जावे, परन्तु एक बाल इनमे नही । नदी का प्रवाह (गंगा और सिन्धु नदी का) उस पर बह कर चला जावे, परन्तु अन्दर पानी भिदा सके नही । अग्नि भी यदि लग जावे तो वह अन्दर प्रवेश कर सके नही । ऐसे कुवे के अन्दर से सौ-सौ वर्ष के बाद एक बाल-खण्ड निकाले एव सौ-सौ वर्ष के बाद एक २ खण्ड निकालने से जब कुवा खाली हो जावे उतने समय को शास्त्रकार एक पल्योपम कहते है। ऐसे दश क्रोडा-क्रोड़ पल्योपम का एक सागर होता है। २० कोड़ाक्रोड सागरों का एक काल चक्र होता है।
७ काल अल्पबहुत्व द्वार १ अनन्त काल चक्र जावे तब एक कार्मण पुद्गल परावर्त होवे । २ अनन्त कार्मण पु० परावर्त जावे तब तेजस् पुद्गल परावर्त होवे। ३ अनन्त तेजस् पु० परावर्त जावे तब एक औदारिक पु० परावर्त होवे । ४ अनन्त औदारिक पु० परावर्त जावे तब एक श्वासोश्वास पु. परावर्त होवे । ५ अनन्त श्वा० पू० परा० जावे तब एक मन पु०
१ असख्य समय की एक आवलिका, सख्यात आवलिका का एक श्वास, संख्यात समय का एक निश्वास दो मिलकर एक प्राण, सात प्राण का एक स्तोक (अल्प समय), सात स्तोक का एक लव (दो काष्टा का माप), ७७ लव का एक मुहूर्त, तीस मुहूर्त एक अहोरात्रि, १५ अहोरात्रि का एक पक्ष, दो पक्ष एक माह, वारह माह एक वर्ष ।