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भोता अधिकार
२६६ शिष्य श्रोता आचार्यादिक के साथ रहता हुआ पहले तो वचन रूप चोट को मारे। समय-असमय बहुत अभ्यास करता हुआ मेहनत करावे । पीछे सन्देह रूपी मैल को निकाल कर गुरुओ को शान्ति उपजावे । परदेशी राजा के समान यह ग्रहण करने योग्य है।
१० बिड़ाल बिडाल-जैसे बिल्ली दूध के बर्तन को सीके से जमीन पर पटक कर उसमे मिली हुई धूल के साथ साथ दूध को पीती है, उसी तरह कोई श्रोता आचार्यादिक के पास से सूत्रादिक का अभ्यास करते हुए बहुत अविनय और दूसरे के पास जाकर प्रश्न पूछ कर सूत्रार्थ को धारण करे, परन्तु विनय के साथ धारण नहीं करे । इसलिये ऐसा श्रोता त्यागने योग्य है।
११ जाहग जाहग-सहलो यह एक तिर्यञ्च की जाति विशेष का जीव है । यह पहले तो अपनी माता का दूध थोडा-थोडा पीता और फिर वह पच जाने पर और थोड़ा। इस तरह थोडे-थोडे दूध से अपना शरीर पुष्ट करता है, पीछे बडे भारी सर्प का मान भजन करता है। इसी तरह कोई श्रोता आचार्यादिक के पास से अपनी बुद्धि माफिक समय समय पर थोडा-थोडा सूत्र अभ्यास करे और अभ्यास करते हुए गुरुओ को अत्यन्त संतोष पैदा करे, क्योकि अपना पाठ वरावर याद करता रहे और उसे याद करने पर फिर दूसरी बार और तीसरी बार इस तरह थोडा-२ लेकर पश्चात् बहुश्रुत होकर मिथ्यात्वी लोगो का मान मर्दन करे । यह आदरने योग्य है।
१२ गाय गाय इसके दो प्रकार । प्रथम प्रकारः जैसे दूधवती गाय को एक सेठ किसी अपने पडोसी को सौप कर अन्य गाँव जाये । पडोसी घास,