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श्रोता अधिकार
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१४ आभीरी आभीरी-प्रथम प्रकार • आभीर स्त्री-पुरुष एक ग्राम से पास के शहर मे गडवे मे घी भर कर बेचने को गये । वहां वाजार मे उतारते समय घी का भाजन-वर्तन फूट गया व जिससे घी ढुलक गया। पुरुप स्त्री को कुवचन कह कर उपालम्भ देने लगा, स्त्री भी पुन भर्ता के सामने कुवचन कहने लगी। इस बीच मे सब घी निकल कर जमीन पर बहने लगा व स्त्री पुरुष दोनो शोक करने लगे। जमीन पर गिरे हुए घी को पुनः पूछ कर ले लिया व बाजार मे बेच कर पैसे सोधे किये । पैसे लेकर सायकाल को गॉव जाते समय चोरो ने उन्हे लूट लिया । अत्यन्त निराश हुए, लोगो के पूछने पर सब वृत्तान्त कहा जिसे सुन कर लोगो ने उन्हे बहुत ही ठपका दिया । वैसे ही गुरु के द्वारा व्याख्यान मे दिये हुए उपदेश (सार घी) को लड़ाई झगडा करके ढोल दिया व अन्त मे क्लेश करके दुर्गति को प्राप्त करे यह श्रोता छोडने योग्य है ।
दूसरा प्रकार-घी भर कर शहर मे जाते समय बर्तन उतारने 'पर फूट गया, फूटते ही दोनो स्त्री पुरुषो ने मिलकर पुन. भाजन मे घी भर लिया। बहुत नुकसान नही होने दिया। घी को बेचकर पैसे सीधे किये व अच्छा सग करके गांव मे सुख पूर्वक अन्य सुज्ञ पुरुषो के समान पहुँच गये, वैसे ही विनीत शिष्य (श्रोता) गुरु के पास से वाणी सुनकर व शुद्ध भाव पूर्वक तथा सूत्र अर्थ को धार कर रक्खे; सांचवे । अस्खलित करे, विस्मृति होवे तो गुरु के पास से पुन २ क्षमा मांग कर धारे, पूछे परन्तु क्लेश झगडा करे नही। गुरु उन पर प्रसन्न होवे, सयम ज्ञान की वृद्धि होवे, व अन्त मे सद्गति पावे यह श्रोता आदरणीय है।