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श्रोता अधिकार श्रोता अधिकार श्री नन्दिसूत्र में है सो नीचे अनुसार
गाथा सेल' घण, कुडग, चालणी, परिपुणग, हंस', महिस, मेसे", या भसग', जलूग', बिरालो', जाहग, गो१२, भेरि'3, आभेरी१४ सा ।११ चौदह प्रकार के श्रोता होते है :
१ शैलघन जैसे पत्थर पर मेघ गिरे, परन्तु पत्थर मेघ (पानी) से भीजे नही। वैसे ही एकेक श्रोता व्याख्यानादिक सुने; परन्तु सम्यक् ज्ञान पावे नही, बुद्ध होवे नहीं।। __ दृष्टान्त-कुशिष्य रूपी पत्थर, सद् गुरु रूपी मेघ तथा बोध रूपी पानी मुग शेलिआ तथा पुष्करावर्त मेघ का दृष्टान्त-जैसे पुष्करावर्त मेघ से मुंग शेलीआ पिघले नही वैसे ही एकेक कुशिष्य महान् संवेगादिक गुणयुक्त आचार्य के प्रतिबोधने पर भी समझे नही, वैराग्य रंग चढ़े नही, अतः ऐसे श्रोता छोड़ने योग्य है एवं अविनीत का दृष्टान्त जानना
दूसरा प्रकार-काली भूमि के अन्दर जैसे मेघ बरसे तो वह भूमि अत्यन्त भीज जावे व पानी भी रक्खे तथा गोधूमादिक (गेहूं प्रमुख) की अत्यन्त निष्पत्ति करे वैसे ही विनीत सुशिष्य भी गुरु की उपदेश रूपी वाणी सुनकर हृदय मे धार रक्खे, वैराग्य से भीज जावे व अनेक अन्य भव्य जीवों को विनय धर्म के अन्दर प्रवर्तावे, अतः ये श्रोता आदरवा योग्य है।
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