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छः आरो का वर्णन चारो जीव सभी से क्षमा कर, निशल्य होकर संथारा करेगे । उस समय संवर्तक, महासवर्तक नामक हवा चलेगी जिससे पर्वत, गढ, कोट, कुवे, बावडिये आदि सर्व स्थानक नष्ट हो जावेगे केवल १ वैताढ्य पर्वत २ गगा नदी ३ सिधु नदी · ऋषभ कूट ५ लवरण की खाडी ये पाँच स्थान बचे रहेगे शेष सब नष्ट हो जावेगे। वे चार जीव समाधि परिणाम से काल करके प्रथम देवलोक में जावेगे पश्चात चार बोल विच्छेद होवेगे १ प्रथम प्रहर में जैन धर्म २ दूसरे प्रहर मे मिथ्यात्वियो के धर्म ३ तीसरे प्रहर मे राजनीति और चौथे प्रहर मे बादर अग्नि का विच्छेद हो जावेगा। __ पांचवे आरे के अन्त तक जीव चार गति में जाते है केवल एक पाचवी मोक्ष गति में नही जाते है।
छट्ठा आरा उक्त प्रकार से पचम आरे की समाप्ति होते ही २१००० वर्ष 'दुःखमा-दुखमा' नामक छ8 आरे का आरम्भ होगा। तब भरतक्षेत्राधिष्ठित देव पञ्चम आरे के विनाश पाते हुए पशु मनुष्यो मे से बीज रूप कुछ मनुष्यो को उठाकर वैताढय गिरि के दक्षिण और उत्तर मे जो गगा और सिन्ध नदी है उनके आठो किनारो में से एक एक तट मे नव नव बिल है एव सर्व ७२ बिल है और एक एक बिल में तीन तीन मजिल है उनमे से उन पशु व मनुष्यो को रक्खेगे । छ? आरे मे पूर्वा पेक्षा वर्ण गन्ध, रस, स्पर्श आदि पुद्गलों की पर्यायो की उत्तमता मे अनन्त गुणी हानि हो जावेगी । क्रम से घटते-घटते इस आरे मे देह मान एक हाथ का, आयुष्य २० वर्ष का उतरते आरे मूठ कम एक हाथ का व आयुष्य १६ वर्ष का रह जावेगा। इस आरे मे सघयन एक सेवात, सस्थान एक हुँडक उतरते आरे मे भी ऐसा ही जानना । मनुष्य के शरीर में आठ पसलियाँ व उतरते आरे केवल चार पसलिये रह जावेगी। इस आरे