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जैनागम स्तोक संग्रह
साथ सहवास करना नही । घृत के घट को अग्नि का दृष्टांत ( ४ ) स्त्री का अङ्ग अवयव, उसकी आकृति, उसकी बोलचाल व उसका निरीक्षण आदि को राग दृष्टि से देखना नही - सूर्य की दुखती आँखों से देखने का दृष्टान्त (५) स्त्री सम्बन्धी कूजन, रुदन, गीत, हास्य, आक्रन्दन आदि सुनाई देवे ऐसी दीवार के समीप निवास नही करना, मयूर को गर्जारव का दृष्टान्त ( ६ ) पूर्वगत स्त्री सम्बन्धी क्रीडा, हास्य, रति, दर्प, स्नान, साथ में भोजन करना आदि स्मरण नही करना । सर्प के जहर (विष) का दृष्टान्त ( ७ ) स्वादिष्ट तथा पौष्टिक आहार नित्यप्रति करना नही । त्रिदोषी को घृत का दृष्टान्त (८) मर्यादित काल में धर्मयात्रा के निमित्त भोजन चाहिये उससे अधिक आहार करना नही । कागज की कोथली में रुपयो का दृष्टात (e) शरीर सुन्दर व विभूषित करने के लिये श्रृंगार व शोभा करना नही । रंक के हाथ रत्न का दृष्टान्त ।
१० दश प्रकार का श्रमण धर्म :
( यति) धर्म - १ क्षमा ( सहन करना) २ मुक्ति (निर्लोभिता रखना) ३ आर्जव ( निर्मल स्वच्छ हृदय रखना) ४ मार्दव ( कोमल - विनय बुद्धि रखना व अहङ्कार-मद नही करना) ५ लाघव -(अल्प उपकररण-साधन रखना) ६ सत्य ( सत्यता - प्रमाणिकता से वर्तना) ७ सयम ( शरीरइन्द्रिय आदि को नियमित रखना ) ८ तप ( शरीर दुर्बल होवे इससे उपवासादि तप करना) चैत्य - ( दूसरों को उपकार बुद्धि से ज्ञानादि देना) १० ब्रह्मचर्य (शुद्ध आचार-निर्मल पवित्र वृत्ति में रहना ) दश प्रकार की समाचारी-१ आवश्यकी - स्थानक से बाहर जाना हो तो गुरु आदि को कहना कि अवश्य करके मुझे जाना है २ नैषेधिकस्थानक में आना हो तो कहना कि निश्चय कार्य कर के मैं आया हूँ ३ आप्पृच्छना-अपने को कार्य होवे तब गुरु को पूछना, ४ प्रतिपृच्छना दूसरे साधओ का कार्य होवे तब बारंबार गुरु को जतलाने के लिये