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जैनागम स्तोक संग्रह
११ सूक्ष्म द्वार सबसे स्थूल (मोटे) औदारिक शरीर के पुदगल, इससे वैक्रिय शरीर के पुद्गल सूक्ष्म, इससे आहारक शरीर के पुद्गल सूक्ष्म, इससे तेजस् शरीर के पुद्गल सूक्ष्म व इससे कार्मण शरीर के पुद्गल सूक्ष्म ।
१२ अवगाहना का अल्पबहुत्व द्वार सबसे जघन्य औदारिक शरीर की जघन्य अवगाहना इससे, तेजस् कार्मण की जघन्य अवगाहना परस्पर बराबर व औदारिक से विशेष। वैक्रिय की जघन्य अवगाहना अ० गुणी, इससे आहारक की उत्कृष्ट अवगाहना विशेष, इससे औदारिक की उ० अवगाहना सख्यात गुणी, इससे वैक्रिय की उत्कृष्ट अवगाहना सख्यात गुणी, इससे तेजस् कार्माण उ० अवगाहना परस्पर बराबर व वैक्रिय से असख्यात गुणी अधिक।
१३ प्रयोजन द्वार १ औदारिक शरीर का प्रयोजन मोक्ष प्राप्ति मे सहायीभूत होना, १ वैक्रिय शरीर का प्रयोजन विविध रूप बनाना, ३ आहारक शरीर का प्रयोजन संशय निवारण करना, ४ तेजस् शरीर का प्रयोजन पुदगलो का पाचन करना, ५ कार्मण शरीर का प्रयोजन आहार तथा कर्मो को आकर्षण (खीचना) करना।
१४ विषय (शक्ति) द्वार औदारिक शरीर का विषय पन्द्रहवा रूचक नामक द्वीप तक जाने का (गमन करने का), २ वैक्रिय शरीर का विपय असंख्य द्वीप समुद्र तक जाने का, ३ आहारक शरीर का विषय अढाई द्वीप समुद्र तक जाने का, ४ तेजस् कार्मण का विपय सर्व लोक मे जाने का ।