________________
बडा बसाठिया
२६७ उपयोग-२ ज्ञान, २ अज्ञान, दर्शन-चक्षु दर्शन और अचक्षु दर्शन, लेश्या ३ प्रथम ।
पंचेंन्द्रिय में जीव के भेद : ४-संज्ञी पंचेन्द्रिय और असंज्ञी पचेन्द्रिय इन दो का अपर्याप्त और पर्याप्त । गुण० १२ प्रथम, योग १५, उपयोग १० केवल के दो छोड कर, लेश्या ६ ।
अनिन्द्रिय में जीव का भेद १ संज्ञी का पर्याप्त । गुण० २ ( १३ वा और १४ वां), योग ७–१ सत्यमन, २ व्यवहार मन, ३ सत्य वचन, ४ व्यवहार वचन, ५ औदारिक, ६ औदारिक मिश्र, ७ कार्मण काय । उपयोग २–केवल ज्ञान व दर्शन लेश्या १ शुक्ल ।
सइन्द्रिय प्रमुख सात बोल में रहे हुए जीवो का अल्प बहुत्व :१ सब से कम पचेन्द्रिय, २ इससे चौरिन्द्रिय विशेषाधिक, ३ इससे त्रिइन्द्रिय विशेषाधिक ४ इससे बेइन्द्रिय विशेषाधिक, ५ इससे अनिन्द्रिय अनन्त गुणे (सिद्ध आश्री ), ६ इससे एकेन्द्रिय अनन्त गुणे ( वनस्पति आश्री ), ७ इससे सइन्द्रि विशेषाधिक ।
४ काय द्वार : १ सकाय में-जीव के भेद १४, गुण० १४, योग १५, उपयोग १२, लेश्या ६।
२. ३, ४ पृथ्वी काय, अप्काय वनस्पति काय •-इन तीनो में जीव के भेद ४, सूक्ष्म एकेन्द्रिय व वादर एकेन्द्रिय का अपर्याप्त और पर्याप्त एवं ४ गुणस्थानक १ प्रथम, योग : दो औदारिक का और १ कार्मण काय । उपयोग ३-२ अज्ञान और १ अचक्षु दर्शन, लेश्या ४ प्रथम।
५-६ तेजस काय, वायु काय मे-जीव के भेद ४ पृथ्वीवत, गुणस्थानक १ प्रथम, योग नेजस में ३ पृथवीवत् वायु मे ५-दो औदारिक का और दो वैक्रिय का, एक कार्मण, उपयोग ३ पृथ्वीवत्, लेश्या ३ प्रथम ।