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जैनागम स्तोक संग्रह
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४३ तैजस् शरीर एवं चार देह - ४४ पुद्गलास्ति काय का वादर स्कंध, ६ द्रव्य लेश्या ( १ कृष्ण, २ नील ३ कापोत ४ तेजो ५ पद्म ६ शुक्ल ) ५०, ५१ काय योग एवं सर्व ५१ बोल रूपी आठ स्पर्श है । इनमें वीसबीस बोल पावे | पांच वर्ण, दो गन्ध ७, पांच रस १२, आठ स्पर्श - १३ शीत १४ ऊष्ण १५ लूखा ( रूक्ष) १६ स्निग्ध १७ गुरु (भारी) १८ लघु ( हलका) १६ खरखरा २० सुवांला (मृदु- कोमल) 1
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गाथा :
= पाव ठाणा विरइ, चर चर बुद्धि उग्गहे । सन्ना धम्मत्थी पंच उठारणं, भाव लेस्साति दिठीय ॥४॥ अर्थ :- अठारह पाप स्थानक की विरति (पाप स्थानक से निवर्त होना) १८, चार बुद्धि - १९ औत्पातिकी २० (कार्मिका) कामीया २१ विनया २२ परिणामिया ; चार मति २३ अवग्रह २४ इहा २५ अवाय २६ धारणा ; चार संज्ञा - २७ आहार संज्ञा २८ भय संज्ञा २६ मैथुन संज्ञा ३० परिग्रह संज्ञा ; पंचास्तिकाय - ३१ धर्मास्ति काय ३२ अधमस्ति काय ३३ आकाशास्ति काय ३४ काल और ३५ जीवास्ति काय, पांच उत्थान-३६ उत्थान ३७ कर्म ३८ वीर्य ३६ बल और ४० पुरुषाकार पराक्रम ६ भाव लेश्या - ४६, और तीन दृष्टि- ४७ समकित दृष्टि ४८ मिथ्या दृष्टि ४६ मिश्र दृष्टि ।
गाथा :=दसण नारण सागरा अरणागारा चउवीसे दंडगा जीव ; ए सव्वे अवन्ना अरूवी अकासगा चेव ॥ ५ ॥ अर्थ — दर्शन चार- ५० चक्षुदर्शन ५१ अचक्षु दर्शन ५२ अवधि दर्शन ५३ केवल दर्शन, ज्ञान पांच - ५४ मति ज्ञान ५५ श्रुतज्ञान ५६ अवधि ज्ञान ५७ मन : पर्यय ज्ञान ५८ केवल ज्ञान ५६ ज्ञान का उपयोग सो साकार उपयोग ६० दर्शन का उपयोग सो अनाकार उपयोग ६१ चवीस ही दण्डक के जीव ।
एवं सर्व ६१ बोल में वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श कुछ नही पावे कारण कि ये सर्व बोल अरूपी के है ।