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जैनागम स्तोक संग्रह उपयोग जघन्य उत्कृष्ट दोनों का एक साथ अल्पबहुत्व :-सबसे कम चक्षु० का जघन्य उपयोग काल, इससे श्रोत्रे० का जघन्य उपयोग काल विशेष, इससे घ्राणे० का जघन्य उपयोग काल विशेष, इससे रसे० का जघन्य उपयोग काल विशेष, इससे स्पर्श का जघन्य उपयोग काल विशेष, इससे चक्षु० का उत्कृष्ट उपयोग काल विशेष, इससे श्रोत्रे० का उत्कृष्ट उपयोग काल विशेष, इससे रसे० का उत्कृष्ट उपयोग काल विशेष, इससे स्पर्शे० का उत्कृष्ट उपयोग काल विशेष ।
११ वाँ आहार द्वार सूत्र श्री प्रज्ञापना में से जानना । जैसा कि निम्न प्रकार से है :(१) पांच स्थावर काय के जीव कम से कम ३ दिशाओ का और अधिक से अधिक छह ही दिशाओ का आहार लेते है । ओज व रोम आहार लेते है तथा सचित्त, अचित्त और मिश्र तीनों प्रकार का लेते है।
(२) विकलेन्द्रिय जीव छह ही दिशाओं का' और ओज, रोम, कवल लेते है । सचित्त, अचित्त और मिश्र का लेते है।
(३) सन्नी असन्नी तिर्यच छह ही दिशाओं का ओज, रोम, कवल लेते है। सचित्त-अचित्त और मिश्र तीनों प्रकार का लेते है।
(४) कर्मभूमि, अकर्मभूमि और अतद्वीप के मनुष्य छह ही दिशाओ का ओज, रोम, कवल लेते है तथा सचित्त, अचित्त मिश्र तीनों प्रकार का लेते हैं।
(५) नारकी तथा चारों प्रकार के देव ओज व रोम आहार लेते हैं। अचित्त पुद्गलो का आहार लेते है और छह ही दिशाओं का लेते है।