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जैनागम स्तोक संग्रह श्रत निश्रीत मति ज्ञान के चार भेद : १ अवग्रह, २ इहा, ३ अवाय, ४ धारणा ।
आग्रह के भेद : अवग्रह के दो भेद :-१ अर्थावग्रह, २ व्यञ्जनावग्रह ।। व्यञ्जनावग्रह के चार भेद :-१ श्रोत्रन्द्रिय व्यञ्जनावग्रह, २ घ्राणेन्द्रिय व्यञ्जना० ३ रसनेन्द्रिय व्यज० ४ स्पर्शेन्द्रिय व्यञ्ज।
व्यञ्जनावग्रह-जो पुद्गल इन्द्रियों के सामने होवे उन्हे वे इन्द्रिये ग्रहण करे-सरावले के दृष्टान्त समान वह व्यञ्जनावग्रह कहलाता है।
चक्षु इन्द्रिय और मन ये दो रूपादि पुद्गल के सामने जाकर उन्हे ग्रहण करे इसलिये चक्षुइन्द्रिय और मन इन दो के व्यञ्जनावग्रह नही होते है, शेष चार इन्द्रियो का व्यञ्जनावग्रह होता है।
श्रोत्रन्द्रिय व्यञ्जना०-जो कान के द्वारा शब्द के पुद्गल ग्रहण करे।
घ्राणेन्द्रिय व्यञ्जनाo-जो नासिका से गन्ध के पुद्गल ग्रहण करे।
रसनेन्द्रिय व्यञ्जना०-जो जिह्वा के द्वारा रस के पुद्गल ग्रहण करे।
स्पर्शेन्द्रिय व्यञ्जना०—जो शरीर के द्वारा स्पर्श के पुद्गल ग्रहण करे।
व्यञ्जना० को समझाने के लिये दो दृष्टान्त :(१) पडिबोहग दिठतेण, (२) मल्लग दिठतेणं ।
पडिबोहग दिठतेण .-प्रतिबोधक (जगाने का) दृष्टान्त, जैसे किसी सोते हुए पुरुष को कोई अन्य पुरुष बुलाकर आवाज देवे 'हे देवदत्त' ! यह सुनकर वह जाग उठता है और जाग कर 'हू' जवाब