________________
जैनागम स्तोक संग्रह
२०६
७ त्रि इन्द्रिय काय संयम ८ चौरिन्द्रिय काय संयम & पंचेन्द्रिय काय संयम १० अजीव काय संयम ११ प्रेक्षा संयम १२ उत्प्रेक्षा संयम १३ अपहृत्य संयम १४ प्रमार्जना संयम १५ मन संयम १६ वचन संयम १७ काय संयम ।
१८ अठारह प्रकार का ब्रह्मचर्य :
औदारिक शरीर सम्बन्धी भोग १ मन से, २ वचन से, ३ काया से सेवे नही, ३, सेबावे नही, ६, सेवता प्रति अनुमोदन करे नही, e इसी प्रकार वैक्रिय शरीर सम्बन्धी ।
१६ उन्नीस प्रकार का ज्ञातासूत्र के अध्ययन :
१ उत्क्षिप्त - मेघकुमार का २ धन्य सार्थवाह और विजय चोर का ३ मयूर ईडाका ४ कूर्म (काचबा ) का ५ शैलक राजर्षि का ६ तुम्बे का ७ धन्य सार्थवाह और चार बहुओ का ८ मल्ली भगवती का & जिन पाल जिन रक्षित का १० चन्द्र की कला का ११ दावानल का १२ जित शत्रु राजा और सुबुद्धि प्रधान का १३ नन्द मणियार का १४ तेतलिपुत्र प्रधान और पोटीला - सोनार पुत्री का १५ नन्दफल का १६ अवरकंका का १७ समुद्र अश्व का १८ सुसीमा दारिका का १६ पु ंडरीक कंडरीक का।
बीस प्रकार के असमाधिक स्थान :
१ उतावला उतावला चाले २ पूज्या बिना चाले ३ दुष्ट रीति से पूजे ४ पाट-पाटला, शय्या आदि अधिक रक्खे ५ रत्नाधिक के ( बड़ो के ) सामने बोले ६ स्थविर, वृद्ध गुरु आचार्यजी का उपघात [नाश] करे ७ एकेन्द्रियादि जीव को साता, रस, विभूषा निमित्त मारे - क्षण क्षण प्रति क्रोध में हमेशा प्रदीप्त रहे १० पृष्ट मांस खावे अर्थात् दूसरों की पीछे से निन्दा बोले ११ निश्चय वाली भाषा बोले १२ नया क्लेश [झगड़ा] उत्पन्न करे १३ जो झगड़ा बन्द हो