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तेतीस बोल ।
२०६ ३ स्थानक आदि सुधारना नही ४ स्वधर्मी का अदत्त लेना नही ५ स्वधर्मी की वैयावच्च करना।
__ चौथे महाव्रत की पाँच भावना : । १ स्त्री, पशु पडक वाला स्थानक सेवना नही २ स्त्री के साथ विषय-सम्बन्धी कथा वार्ता करनी नही ३ राग-दृष्टि से विषय उत्पन्न करने वाले स्त्री के अग अवयव देखना नही ४ पूर्व गत सुरत क्रीडा का स्मरण करना नही ५ स्वादिष्ट व पौष्टिक आहार नित्य करना नही।
पाचवे महाव्रत की पाँच भावना : १ मधुर शब्दो पर राग करना नही और कठोर शब्दो पर द्वेष करना नही २ सुन्दर रूप पर राग और खराब रूप पर द्वेष करना नही ३ सुगन्ध पर राग और दुर्गन्ध पर द्वेष करना नही ४ स्वादिष्ट रस पर राग और खराब (कडवा आदि) रस पर द्वेष करना नही ५ कोमल (सुवाला) स्पर्श पर राग और कठोर स्पर्श पर द्वेष करना नही।
२६ छवीश प्रकार के दशाश्रु तस्कन्ध, वृहत्कल्प और व्यवहारसूत्र के अध्ययन
( १ ) १० दशाश्रु तस्कन्ध के ( २ ) ६ वृहत्कल्प के और (३) __१० व्यवहार के स्कन्ध ।
२७ सत्तावीस प्रकार के अणगार (साधु) के गुणः १ सर्व प्राणतिपात वेरमण २ सर्व मृषावाद वेरमणं ३ सर्व अदत्तादान वेरमण ४ सर्व मैथुन वेरमण ५ सर्व परिग्रह वेरमण ६ श्रोत्रेन्द्रिय निग्रह ७ चक्षु इन्द्रिय निग्रह ८ घ्राणेन्द्रिय निग्रह ६ रस
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