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जैनागम स्तोक संग्रह
करे परन्तु खुद के लिये आरम्भ त्याग करने का नियम न होवे । आठवी प्रतिमा जघन्य एक दिन की उत्कृष्ट आठ माह की इसमें आरम्भ नही करे । नववी प्रतिमा - उसी प्रकार उत्कृष्ट नव माह की इसमें आरम्भ करने का भी नियम करे । १० दशवी प्रतिमा - उत्कृष्ट दश माह की । इसमें पूर्वोक्त सर्व नियम करे व उपरान्त क्षुर मुंडन करावे अथवा शिखा रखे कोई यह एक बार पूछने पर तथा वांरवार पूछने पर दो भाषा बोलना कल्पे । जाने तो हां कहना कल्पे और न जाने तो नहीं कहना कल्पे । ११ ग्यारहवी प्रतिमा उत्कृष्ट ११ माह कीइसमें क्षुर मुरौंडन करावे अथवा केश लोच करावे, साधु-श्रमण समान उपकरण -- पात्र रजोहरण आदि धारण करे, स्वजाति में गौचरी अर्थ भ्रमण करे और कहे कि मै प्रतिमा धारी हूँ, भिक्षा देवो ? साधु समान उपदेश देवे । एवं सर्व मिला कर ११ प्रतिमा में ५ वर्ष ६ माह काल लागे ।
१२ बारह भिक्षु की प्रतिमा :
( अभिग्रह रूप ) - १ पहली प्रतिमा एक माह की, इसमें शरीर ऊपर ममता-स्नेह भाव नही रखे, शरीर की शुश्रूषा नही करे कोई मनुष्य देव तिर्यंच आदि का परिषह उत्पन्न होवे उसे सम परिणाम से सहन करे ।
२ एक दाति आहार की, एक दाति जल की लेना कल्पे । यह आहार शुद्ध निर्दोष; कोई श्रमण, ब्राह्मण, अतिथि, कृपण, रक प्रमुख द्विपद तथा चतुष्पद को अन्तराय नही लगे, इस तरह से लेवे | तथा एक मनुष्य जिमता ( भोजन करता ) होवे व एक के निमित्त भोजन तैयार किया होवे वह आहार लेवे । दो के भोजन करने में से देवे तो नही लेवे; तीन, चार, पांच आदि भोजन करने को बैठे हुवे हों उसमें से देवे तो न लेवे, गर्भवती निमित्त उत्पन्न किया होवे वह न लेवे तथा नवप्रसूती का आहार नही लेवे, बालक को दूध