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दश द्वार के जीव स्थानक इन दो की नीमा १ अज्ञान वादी, २ विनयवादी इन दो का वाद इस तरह २४ सपराय क्रिया लगती है।
(४) अव्रती समदृष्टि जीव स्थानक मे मोहनीय कर्म की २८ प्रकृति मे से ७ का क्षयोपशम, २१ का उदय । अनन्तानु बधी क्रोध, मान, माया, लोभ ५ समकित मोहनीय ६ मिथ्यात्व मोहनीय इन सात का क्षयोपशम २१ का उदय-ऊपर कहे हुए सात क्षयोपशम मे एक मिथ्यादर्शनवत्तिया क्रिया नही लगे २१ के उदय में २३ सपराय क्रिया लगे।
(५) देशवती जीव स्थानक मे मोहनीय कर्म की २८ प्रकृति मे से ११ का क्षयोपशम व १७ का उदय १ अनन्तानु बंधी क्रोध २ मान ३ माया ४ लोभ ५ समकित मोहनीय ६ मिथ्यात्व मोहनीय ७ मिश्र मोहनीय ८ अप्रत्याख्यानी क्रोध ६ मान १० माया १ लोभ । इन ११ का क्षयोपशम व उक्त ११ बोल छोड कर शेष २८-११) १७ का उदय, ११ क्षयोपशम मे मिथ्यात्व दर्शन वत्तिया क्रिया व अप्रत्याख्यान क्रिया ये दो क्रिया नही लगे, १७ के उदय मे २२ सपराय क्रिया लगे।
(६) प्रमत्त सयति जीवस्थानक मे मोहनीय कर्मकी २८ प्रकृति मे से १५ का क्षयोपशम १३ का उदय १ अनन्तानु बधी क्रोध, २ मान ३ माया ४ लोभ ५ समकित मोहनीय ६ मिथ्यात्व माहनीय ७ मिश्र मोहनीय ८ अप्रत्याख्यानी क्रोध ६ मान १० माया ११ लोभ १२ प्रत्याख्यानी क्रोध १३ मान १४ माया १५ लोभ । इन १५ का क्षयोपशम उक्त १५ बोल छोडकर शेष १३ बोल का उदय १५ के क्षयोपशम मे २२ सपराय क्रिया नही लगे १३ के उदय मे १ आरम्भिया, २ माया वत्तिया ये दो क्रिया लगे। 8 जीव स्थानक आरम्भ नही करे, परन्तु घृत के कुम्भवत् ।
. (७) जीव स्थानक मे मोहनीय कर्म की २८ प्रकृति में से १६ का क्षयोपशम, १२ का उदय १५ बोल तो ऊपर कहे हुए और १ सज्वलन