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जैनागम स्तोक संग्रह
करके पूछने लगा कि महाराज मेरे मित्र ने वन्दना करने के लिये पैर उठाया, इससे उसे किस गुरण की प्राप्त हुई ? तब मुनि ने उत्तर दिया कि जो काले उडद के समान था वह दाल के समान हुआ, कृष्ण पक्षी का शुक्ल पक्षी हुआ, अनादि काल से उल्टा था जिसका सुलटा हुआ, समकित के सन्मुख हुआ, परन्तु पैर भरने समर्थ नही । इस पर गौतम स्वामी हाथ जोड़ मान मोड़ वन्दना नमस्कार कर श्री भगवन्त को पूछने लगे 'हे स्वामी ाथ, इस जोव को किस गुण की प्राप्ति हुई ?' तब भगवान ने कहा कि जीव ४ गति २४ दंडक में भटक कर उत्कृष्ट देश न्यून अर्द्ध परावर्तन काल मे संसार का पार पायेगा ।
४ अव्रती सम्यग् दृष्टि गुणस्थान :- अव्रती सम्यक्त्व दृष्टिअनन्तानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ, सम्यक्त्व मोहनीय, मिथ्यात्व मोहनीय, मिश्र मोहनीय । इन सात प्रकृति का क्षयोपशम करे अर्थात् ये सात प्रकृति जब उदय में आवे तब क्षय करे और सत्ता में जो दल है उनको उपशम करे उसे क्षयोपशम सम्यक्त्व कहते है । यह सम्यक्त्व असख्यात बार आता है । ७ प्रकृति के दलो को सर्वथा उपशमावे तथा ढांके उसे उपशम सम्यक्त्व कहते है, यह सम्यक्त्व पाँच बार आवे । सात प्रकृति के दलों को क्षयोपशम करे उसे क्षायिक समकित कहते है, यह समकित केवल एक बार आवे । इस गुणस्थान पर आया हुआ जीव जीवादिक नक पदार्थ द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से, भाव से नोकारसी आदि छमासी तप जाने, श्रद्ध े, परूपे, परन्तु फरस सके नही । तिवारे गौतम स्वामी हाथ जोड़ मान मोड श्री भगवन्त को पूछने लगे कि - स्वामीनाथ इस गुणस्थान के जीव को किस गुण की प्राप्ति होती है ? उत्तर में श्री भगवन्त ने फरमाया कि - हे गौतम! समकित व्यवहार से शुद्ध प्रवर्तता हुआ, यह जीव जघन्य तीसरे भव मे व उत्कृष्ट पन्द्रहवे भव में मोक्ष जावे । वेदक समकित एक बार आवे । इस समकित की स्थिति एक समय