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जैनागम स्तोक संग्रह
१२ : कारण द्वार कर्म बन्ध के कारण पांच-१ मिथ्यात्व २ अविरति (अवर्ती) ३ प्रमाद ४ कषाय ५ योग। पहेले तीसरे गुण० ५ कारण पावे। दूसरे, चौथे गुण० चार कारण (मिथ्यात्व छोड़ कर) पाँचवे छ? गु० ३ कारण (मिथ्यात्व, अविरति छोड़ कर) सातवें से दशवे ग० तक २ कारण पावे कषाय, योग । ग्यारहव, बारहव, तेरहन शु० १ कारण पावे १ योग चौदहवे गु० कारण नही पावे ।
१३ : परिषह द्वार पहले से चौथे गु० तक यद्यपि परिषह २२ पावे परन्तु दु ख रूप है निर्जरा रूप में प्रणमें नही। पाँचवें से नवव गुण० तक २२ परिपह पावे एक समय में २० वेदे, शीत का होवे वहां ताप का नही और ताप का होवे वहां शीत का नही, चलने का होवे वहां बैठने का नही और बैठने का होवे वहां चलने का नही । दशवे ग्यारहवे बारहवें' गुण० १४ परिषह पावे (मोहनीय कर्म के उदय से होने वाले ८ छोड़ कर)-अचेल, अरति, स्त्री का, बैठने का, आक्रोश का, मेल का, सत्कार पुरस्कार का एवं सात चारित्र मोहनीय कर्म के उदय होने से और १ दंसण परिषह (दर्शन मोहनीय के उदय होने से) एवं आठ परिषह छोड कर शेप १४ इनमे से एक समय में १२ वेदे शीत का वेदे वहा ताप का नही, और ताप का वहां शीत का नही, चलने का होवे वहां बैठने का नही और बैठने का होवे वहां चलने का नही ? तेरहवे चौदहवे गुण० ११ परिपह पावे । उक्त परिषह में से तीन छोड कर शेप ११ (१) प्रज्ञा का (२) अज्ञान का ये दो परिषह । ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से और (३) अलाभ का परिपह अन्तराय कर्म के उदय से एवं ३ परिषह छोड़ कर । इन परिषह मे से एक समय में वेदे शीत का होवे वहां ताप का नही, और ताप का वेदे वहां शीत का