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श्री गुणस्थान द्वार
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मान मोड़ी श्री भगवन्त से पूछने लगे - "स्वामीनाथ ! इस जीव को कौन से गुणो की प्राप्ति होवे ?" तब श्री भगवन्त ने फरमाया कि यह जीव कृष्ण पक्षी का शुक्ल पक्षी हुआ और इसे अर्द्ध पुद्गल परावर्तन काल ही केवल ससार मे परिभ्रमण करना शेष रहा । जैसे किसी जीव को एक लाख करोड रुपये देना हो और उसने उसमे से सब ऋण चुका दिया हो, केवल अधेली ( आधा रुपया ) देनी शेष रही हो । इसी प्रकार इस जीव को आधे रुपये कर्ज के समान ससार मे परिभ्रमण करना शेष रहा । सास्वादान समकित पाँच बार आवे |
३ मिश्र गुणस्थान :- तीसरे गुणस्थान का लक्षण :- सम्यक्त्व और मिथ्यात्व इन दो के मिश्र से मिश्र गुणस्थान बनता है । इस पर श्रीखण्ड का दृष्टान्त जैसे श्रीखण्ड कुछ खट्टा और कुछ मीठा होता है, वैसे ही मीठ समान समकित और खट्टे समान मिथ्यात्व । जो जिन मार्ग को अच्छा समझे । जैसे किसी नगर के बाहर साधु महापुरुष पधारे हुए है और श्रावक लोग जिन्हे नमस्कार करने के लिये जा रहे हो उस समय मिश्र दृष्टि मित्र मार्ग मे मिला । उसने पूछा, " मित्र ! तुम कहाँ जा रहे हो ?" इस पर श्रावक ने जवाब दिया कि मै साधु महापुरुष को वन्दना करने जा रहा हूँ । मिश्र दृष्टि वाले ने पूछा कि वन्दना करने से क्या लाभ होता है ? श्रावक ने कहा कि महा लाभ होता है । इस पर मित्र ने कहा कि मै भी बन्दना करने को आता हूँ । ऐसा कह कर उसने चलने के लिये पैर उठाये । इतने मे दूसरा मिथ्यात्वी मित्र मिला, इसने इन्हे देख कर पूछा कि तुम कहा जा रहे हो ? तब मिश्र गुणस्थान वाला बोला कि हम साधु महापुरुष को वन्दना करने के लिये जा रहे है । यह सुनकर मिथ्यावादी बोला कि इनकी वन्दना करने से क्या होता है, ये तो बड़े मैले-कुचैले रहते है इत्यादि कह कर उसे (मिश्र दृष्टि वाले को) पुनः जाते हुए को लौटाया । श्रावक साधु मुनिराज को वन्दना
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