________________
श्री गुणस्थान द्वार
गाथा :नाम, लखण, गुण ठिइ, किरिया, सत्ता, बंध वेदेय । उदय, उदिरणा, चेव, निज्जरा, भाव कारणा ॥ १ ॥ परिसह, मग्ग, आयाय, जीवाय भेदे, जोग, उविउग । लेस्सा, चरण, सम्मत, आया बहुच्च, गुणठाणेहिं ।।२।।
१ नाम द्वार १ मिथ्यात्व गुणस्थान, २ सास्वादान गुणस्थान, ३ मिश्र गुणस्थान ४ अव्रती सम्यक्त्व दृष्टि गुणस्थान, ५ देशव्रती गुणस्थान, ६ प्रमत्त संजति (सयति) गुणस्थान, ७ अप्रमत्त सजति गुणस्थान, ८ नियट्ठि (निवर्ती) वादर गुणस्थान, ६ अनियट्टि (अनिवर्ती) बादर गुणस्थान, १० सूक्ष्म सम्पराय गुणस्थान, ११ उपशान्त मोहनीय गुणस्थान, १२ क्षीण मोहनीय गुणस्थान, १३ सजोगी केवली गुणस्थान, १४ अजोगी केवली गुणस्थान ।
२ लक्षण द्वार १ मिथ्यात्व गुणस्थान .-मिथ्यात्व गुणस्थान का लक्षण-श्री वीतराग के वचनो को कम, ज्यादा, विपरीत श्रद्ध (माने) विपरीत फरसे उसे मिथ्यात्व गुणस्थान कहते हैं। जैसे कोई कहे कि जीव अगूठे समान है, तदुल समान है, शामा (तिल) समान है, दीपक समान है आदि ऐसी परूपना कम (ओछा) परूपना है। अधिक परूपना-एक जीव सर्व लोक ब्रह्माण्ड मात्र मे व्याप रहा है ऐसी परूपना अधिक परूपना है। यह आत्मा पाँच भूतो से उत्पन्न हुई है
१७३