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जैनागम स्तोक संग्रह
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करता हुआ नववे दसवे गुणस्थान पर होता हुआ ग्यारवे को छोड़ कर बारहवे गुणस्थान पर चला जाता है, यह अपडिवाइ होता है और वर्द्ध मान परिणाम मे परिणमता है । जो निवर्ता है बादर कषाय से, वादर सपराय क्रिया से, श्रेणी करे आभ्यन्तर परिणाम पूर्वक अध्यवसाय स्थिर करे व बादर चपलता से निवर्ता है, उसे नियट्टि बादर गुणस्थान कहते है ( दूसरा नाम अपूर्व करण गुणस्थान भी है । किसी समय पूर्व में पहले जीव ने यह श्रेणी कभी की नही और इस गुणस्थान पर पहला ही करण पण्डित वीर्य का आवरण | क्षय करण रूप कररण परिणाम धारा, वर्द्धन रूप श्रेणी करे उसे अपूर्व कररण गुणस्थान कहते है ।
8 अनियट्टि बादर गुणस्थान :- उपरोक्त १७ प्रकृति और संज्वलन की माया, स्त्री वेद, नपुंसक वेद एवं २१ प्रकृति का क्षयोपशम करे, तव जीव नववे गुणस्थान आवे । इस जीव को किस गुण की प्राप्ति होवे ? उत्तर - यह जीव जीवादिक नव पदार्थ तथा नोकारसी आदि छमासी तप द्रव्य से क्षेत्र से, काल से, भाव से, निर्विकार अमायी, विषय निरवछा पूर्वक जाने श्रद्ध, परूपे, फरसे । यह जीव जघन्य उसी भव में उत्कृष्ट तीसरे भव में मोक्ष जावे । सर्व प्रकार से निवर्ता नही केवल अश मात्र अभी संपराय क्रिया शेष रही, उसे अनियट्टि बादर गुणठारणा कहते है । आठवां नववा गठाणा ( गुणस्थान) के शब्दार्थ बहुत ही गम्भीर है अत. इन्हे पञ्चसग्रहादिक ग्रन्थ तथा सिद्धान्त में से जानना ।
१० सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान :- उपरोक्त २१ प्रकृति और 1 हास्य, २ रति, ३ अरति, ४ भय, ५ शोक, ६ दुगंछा एवं २७ प्रकृति का क्षयोपशम करे । इस जीव को किस गुण की प्राप्ति होवे ? उत्तर यह जीव द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से, भाव से जीवादिक नव पदार्थ तथा नोकारसी आदि छमासी तप, निरभिलाष, निवछक, निर्वेद