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________________ १८० जैनागम स्तोक संग्रह , करता हुआ नववे दसवे गुणस्थान पर होता हुआ ग्यारवे को छोड़ कर बारहवे गुणस्थान पर चला जाता है, यह अपडिवाइ होता है और वर्द्ध मान परिणाम मे परिणमता है । जो निवर्ता है बादर कषाय से, वादर सपराय क्रिया से, श्रेणी करे आभ्यन्तर परिणाम पूर्वक अध्यवसाय स्थिर करे व बादर चपलता से निवर्ता है, उसे नियट्टि बादर गुणस्थान कहते है ( दूसरा नाम अपूर्व करण गुणस्थान भी है । किसी समय पूर्व में पहले जीव ने यह श्रेणी कभी की नही और इस गुणस्थान पर पहला ही करण पण्डित वीर्य का आवरण | क्षय करण रूप कररण परिणाम धारा, वर्द्धन रूप श्रेणी करे उसे अपूर्व कररण गुणस्थान कहते है । 8 अनियट्टि बादर गुणस्थान :- उपरोक्त १७ प्रकृति और संज्वलन की माया, स्त्री वेद, नपुंसक वेद एवं २१ प्रकृति का क्षयोपशम करे, तव जीव नववे गुणस्थान आवे । इस जीव को किस गुण की प्राप्ति होवे ? उत्तर - यह जीव जीवादिक नव पदार्थ तथा नोकारसी आदि छमासी तप द्रव्य से क्षेत्र से, काल से, भाव से, निर्विकार अमायी, विषय निरवछा पूर्वक जाने श्रद्ध, परूपे, फरसे । यह जीव जघन्य उसी भव में उत्कृष्ट तीसरे भव में मोक्ष जावे । सर्व प्रकार से निवर्ता नही केवल अश मात्र अभी संपराय क्रिया शेष रही, उसे अनियट्टि बादर गुणठारणा कहते है । आठवां नववा गठाणा ( गुणस्थान) के शब्दार्थ बहुत ही गम्भीर है अत. इन्हे पञ्चसग्रहादिक ग्रन्थ तथा सिद्धान्त में से जानना । १० सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान :- उपरोक्त २१ प्रकृति और 1 हास्य, २ रति, ३ अरति, ४ भय, ५ शोक, ६ दुगंछा एवं २७ प्रकृति का क्षयोपशम करे । इस जीव को किस गुण की प्राप्ति होवे ? उत्तर यह जीव द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से, भाव से जीवादिक नव पदार्थ तथा नोकारसी आदि छमासी तप, निरभिलाष, निवछक, निर्वेद
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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