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जैनागम स्तोक संग्रह उपशमाने (उपशान्त करने से जो २ पदार्थ निपजे उस पर गाथा (अर्थ सहित ):
कसाय पेज्जदोसे, दंसण मोहणीजे चरित्त मोहणीजे । सम्मत्त चरीत्त लद्धी, छउ मत्थे वीयरागे य ।
अर्थ :-कषाय चार, ४, ५ राग ६, दोष ७, दर्शन मोहनीय ८ चारित्र मोहनीय इन आठ की उपशमता ६ समकित तथा उपशम चारित्र की लब्धि की प्राप्ति होवे १० छद्मस्थपना ११ यथाख्यात चारित्रपना ये ११ बोल उपशम से पावे । इसी प्रकार ये ११ बोल उपशम निष्पन्न से भी पावे।
(३) क्षायिक भाव के दो भेद :-१ क्षायिक, २ क्षायिक निष्पन्न । जिनमें से क्षायिक से आठ कर्म का क्षय होवे । आठ कर्म खपाने (क्षय करने ) के बाद जो २ पदार्थ निपजे उसे क्षायिक निष्पन्न कहते है।
क्षायिक निष्पन्न के आठ भेद :-१ ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय हो तव केवल ज्ञान उत्पन्न हो, २ दर्शनावरणीय कर्म का क्षय होवे तब केवल दर्शन उत्पन्न हो, ३ वेदनीय कर्म का क्षय हो तब निरावाधत्वपन उत्पन्न हो, ४ मोहनीय कर्म का क्षय हो तव क्षायिक सम्यकत्व उत्पन्न हो, ५ आयुष्य कर्म का क्षय हो तब अक्षयत्वपन उत्पन्न हो, ६ नाम कर्म का क्षय हो तब अरूपीपन उत्पन्न हो, ७ गोत्र कर्म का क्षय हो तब अगुरु लघुपन उत्पन्न हो, ८ अन्तराय कर्म का क्षय हो तब वीर्यपना उत्पन्न हो।
(४) क्षायोपशमिक भाव के दो भेद :-१ क्षायोपशमिक, २ क्षायोपशमिक निष्पन्न । उदय मे आये हुए कर्मो को खपावे और जो कर्म उदय में नही आवे उन्हे उपशमावे उसे क्षायोपशमिक भाव कहते है । क्षायोपशम करने से जो २ पदार्थ निपजे उन्हे क्षायोपणमिक निप्पन्न कहते है।