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दश द्वार के जीव स्थानक
१६६ क्षायोपशम से जो २ पदार्थ निपजे उस पर गाथा :
दस उव उग तिदिट्ठ चउ चरित्त, चरित्ता चरिते य । दाणाई पच लद्धि, वीरियत्ति पच इंदिए ॥१॥ दुवालस अंग धरे, नव पुन्वी जाव चउदस पुविए।
उवसम, गणी पडिमाअ, इइ चउसम नीककन्ने ।।२।। अर्थ :-छद्मस्थ के १० उपयोग, १०, ३ दृष्ठि, १३, ४ चारित्र पहला, १७, १८ श्रावकत्व, दानादि पञ्चलब्धि, २३, ३ वीर्य २६; ५ इन्द्रिय, ३१, १२, अङ्ग की धारना ४३, नव पूर्व यावत् १४ पूर्व का ज्ञान होना, ४४ उपशम, ४५ आचार्य की प्रतिमा, ४६ एवं ४६ बोल क्षायोपशमिक भाव से निपजे । क्षायोपशमिक निष्पन्न भाव से भी ये ४६ बोल ।
(५) पारिणामिक भाव के दो भेद .-१ सादि पारिणामिक, २ अनादि पारिणामिक । इनमें से प्रथम पारिणामिक भाव के दस भेद १ धर्मास्तिकाय, २ अधर्मास्तिकाय, ३ आकाशास्तिकाय, ४ जीवास्तिकाय, ५ पुद्गलास्तिकाय, ६ अद्धाकाल, ७ भव्य, ८ अभव्य, ६ लोक, १० अलोक, ये दस सर्वदा विद्यमान है । सादि पारिणामिक के भेद नीचे अनुसार।
गाथा :-- जुना सुरा, जुना गुला, जुना घिय, जुना तदुल चेव । अभयं, अभयरुखा, सद्ध गधव्व नगरा ।।१।। उक्कावाए दिसिदाहे, गज्जीए मिज्जुए, रिणग्घाए । जुवए जख्खालित्तए, धुमित्ता महीता रजोघाए ।२।। चदी वरागा, सुरोवरागा, चदो पडिवेसा सुरोपडिवेसा। पडिचदा पडिसुरा, इन्द धणु उदग, मछा, कविहसा अमोहे ।।३।। वासा, वासहरा चेव, गाम, घर णगरा । पयल पायाल भवणा अ, निरअ पासाए ॥४॥
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