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दश द्वार के जीव स्थानक
१६५ परन्तु सात कर्म का उदय है। इससे एक इर्यापथिका (इरियावहिया) क्रिया लगे।
१२ वे जीव स्थानक में मोहनीय कर्म की २८ प्रकृति उपशमाई है । इससे २४ संपराय क्रिया नही लगे, परन्तु सात कर्म का उदय है, इससे एक इर्यापथिका क्रिया लगे।
१३ वे जीव स्थानक में चार घातिया कर्म का क्षय होता है । इससे २४ सपराय क्रिया नहीं लगे। चार अघातिया कर्म का उदय है, इससे एक इपिथिका क्रिया लगे ।
१४ वें जीव स्थानक में चार घातिया कर्म का क्षय होता है और चार अघातिया कर्म का उदय है, जिसमें भी वेदनीय कर्म का बल था वह नही रहा । इससे एक भी क्रिया नहीं लगे।
५ कर्म की सत्ता द्वार पहले जीव स्थानक से ग्यारवें जीव स्थानक तक आठ ही कर्मो की सत्ता, वारहवे जीव स्थानक मे सात कर्म की सत्ता-मोहनीय कर्म की नही, तेहरवे और चौदहवे मे चार कर्म की सत्ता-१ वेदनीय कर्म, २ मायुष्य कर्म ३ नाम कर्म और ४ गौत्र कर्म ।
६ कर्म का बंध द्वार पहला तथा दूसरा जीव स्थानक पर सात तथा आठ कर्म बाधे ( सात बांधे तो आयुप्य कर्म छोड कर सात बाधे ) चौथे से सातवे जीवस्थानक तक सात तथा आठ कर्म बांधे । ऊपर समान तीसरे, आठवे, नववे जीव स्थानक पर सात कर्म बाधे (आयुष्य कर्म छोड़ कर ) दसवे जीव स्थानक पर ६ कर्म बाधे ( आयुष्य और मोहनीय कर्म छोड़ कर ) ११, १२ और १३ वे जीव स्थानक पर एक साता वेदनीय कर्म बांधे और चौदहवे जीव स्थानक पर एक भी कर्म नही बाधे।
पहबांधे तो आत तथा आठ मात कर्म व