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जैनागम स्तोक संग्रह में छः वर्ष की स्त्री गर्भ धारण करने लग जावेगी व कुत्ती के समान परिवार के साथ विचरेगी। गगा सिन्धु नदी का ६२॥ योजन का पाट है, जिनमे से रथ के चक्र समान थोड़ा पाट व गाड़ी की धूरी डूबे इतना गहरा जल रह जायगा जिनमे मत्स्य, कच्छ आदि जीवजन्तु विशेष रहेगे । ७२ बिल के अन्दर रहने वाले मनुष्य सध्या तथा प्रभात के समय उन मत्स्य, कच्छ आदि जीवों को जल से बाहर निकाल कर नदी के किनारे रेत में गाड़ कर रख देगे वे जीव सूर्य की तेज व उग्र शरदी से भुना जावेगे जिनका मनुष्य आहार कर लेवेगे। इनके चमड़े व हड्डियों को चाट कर तिर्यच अपना निर्वाह करेगे। मनुष्यो के मस्तक की खोपड़ी मे जल लाकर पीवेगे । इस तरह २१००० वर्ष पूर्ण होवेगे । जो मनुष्य दान पुण्य रहित, नमोक्कार रहित, व्रत प्रत्याख्यान रहित होवेगे केवल वे ही इस आरे में आकर उत्पन्न होवेगे।
ऐसा जान कर जो जीव जैन धर्म पालेगा तथा जैन धर्म पर आस्था (श्रद्धा ) रखेगा वह जीव इस भवसागर से पार उतर कर परम सुख प्राप्त करेगा।
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