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जैनागम स्तोक संग्रह
२८ आचार्य अपने गच्छ व सम्प्रदाय की परम्परा समाचारी अलग अलग प्रर्वेर्तावेगे तथा मूर्ख मनुष्यों को मोह मिथ्यात्व के जाल में डालेगे, उत्सूत्र प्ररूपक लोगों को भ्रम में फंसाने वाले, निन्दनीक कुबुद्धिक व नाम मात्र के धर्मी जन होवेगे व प्रत्येक आचार्य लोगो को अपनी-अपनी परम्परा में रखने वाले होवेगे ।
२६ सरल, भद्रिक, न्यायी, प्रमाणिक पुरुष कम होवे । ३० म्लेछ राजा अधिक होवे ।
३१ हिन्दू राजा अल्प ऋद्धि वाले व कम होवे ।
३२ सुकुलोत्पन्न राजा नीच कर्म करने वाले होवे ।
इस आरे में धन सर्व-विच्छेद हो जावेगा, लोहे की धातु रहेगी, व चर्म की मोहरे चलेगी जिसके पास ये रहेगे वे श्रीमन्त ( धनवान ) कहलावेगे। इस आरे में मनुष्यों को उपवास मासखमण समान लगेगा |
[ इस आरे में ज्ञान सर्वविच्छेद हो जावेगा केवल दशवैकालिक सूत्र के चार अध्ययन रहेगे । कोई कोई मानते है कि १ दशवैकालिक २ उत्तराध्ययन ३ आचारांग ४ आवश्यक ये चार सूत्र रहेगे । इसमें चार जीव एकावतारी होगे - १ दुपसह नामक आचार्य २ फाल्गुनी नामक साध्वी ३ जिनदास श्रावक ४ नागश्री श्राविका ये सर्व पाचवे आरे के अन्त तक श्री महावीर स्वामी के युगन्धर जानना ।]
आषाढ सुदी १५ को शक्रेन्द्र का आसन चलायमान होवेगा तब शक्रेन्द्र उपयोग द्वारा मालूम करेंगे कि आज पांचवा आरा समाप्त होकर छठ्ठा आरा लगेगा ऐसा जान कर शक्रेन्द्र आवेगे व आकर चार जीवों को कहेंगे कि कल छठा आरा लगेगा अत. आलोचना व प्रतिक्रमण द्वारा शुद्ध बनो अनन्तर ऐसा सुनकर वे
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