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जैनागम स्तोग्न संग्रह (५) केवली की आगति १०८ बोल की-६६ जाति देव में से १५ परमाधर्मी और ३ किल्विषी एवं १८ घटाना-शेप ८१ बोल और १५ कर्म भूमि, ५ सज्ञी तिर्यञ्च, पृथ्वी, अप, वनस्पति, पहली, दूसरी, तीसरी व चौथी नरक एवं (८१+१५+५+१+१+४) १०८ बोल का पर्याप्ता, गति मोक्ष की।
(६) साधु की आगति २७५ बोल की-ऊपर के १७६ बोल में से तेजस् वायु का आठ बोल छोड़ शेष १७१ बोल, ६६ जाति के देव व पहलो नरक से पाँचवी नरक तक (१७१+६६+५) एवं २७५ बोल । गति ७० बोल की बलदेव समान ।
(७) श्रावक की आगति २७६ बोल की-साधु के २७५ बोल व छठी नरक का पर्याप्ता एवं २७६ बोल ।।
गति ४२ बोल की-१२ देवलोक, ६ लोकांतिक इन २१ का अपर्याप्ता और पर्याप्ता एव ४२ ।
(5) सम्यक्त्व दृष्टि की आगति ३६३ बोल की-६६ जाति के देव का पर्याप्ता, १०१ सज्ञी मनुष्य का पर्याप्ता, १०१ संमूच्छिम मनुष्य का अपर्याप्ता १५ कर्मभूमि का अपर्याप्ता, सात नरक का पर्याप्ता और तिर्यञ्च के ४८ भेद में से तेजस् वायु का आठ बोल छोड़ शेष ४० एवं (६६+१०१+१०१+१५+७+४० ) ३६३ बोल । गति २५८ की-६६ जाति का देव, १५ कर्म भूमि, ५ सज्ञी तिर्यञ्च, ६ नरक । इन १२५ का अपर्याप्ता और पर्याप्ता एवं २५० । तीन विकलेन्द्रिय का अपर्याप्ता और ५ असंज्ञी तिर्यञ्च का अपर्याप्ता एवं २५८ ।
(६) मिथ्यात्व दृष्टि की आगति ३७१ बोल की :-६६ जाति का देव और ऊपर कहे हुए १७६ बोल एव २७८, सात नरक का पर्याप्ता और ८६ जाति का युगलिया का पर्याप्ता एवं ३७१ बोल । गति
१ कोई-कोई २२२ की भी मानते है। १५ परमाधामी और तीन किल्विषी के पर्याप्ता और अपर्याप्ता एव ३६ छोडकर ।