________________
गतागति द्वार
१४१ ___५ हरि वास, ५ रम्यक वास । इन दस क्षेत्र के युगलियो की १२६ बोल की-उक्त १२८ बोल मे से पहला किल्विषी का अपर्याप्ता और पर्याप्ता घटाना।
५ हेमवय, ५ हिरण्यवय । इन दस क्षेत्र के युगलियो की १२४ बोल की-उक्त १२६ बोल मे से दूसरे देवलोक का अपर्याप्ता और पर्याप्ता घटाना।
५६ अन्तर द्वीप के युगलियो की २५ बोल की आगति-१५ कर्म भूमि, ५ सज्ञी तिर्यञ्च, ५ असज्ञी तिर्यञ्च एव २५ गति १०२ बोल की-२५ भवन पति, २६ वारण व्यन्तर । इन ५१ का अपर्याप्ता एवं १०२ ये २२ वोल सम्पूर्ण इन २२ बोल मे चौबीस दण्डक की गतागति कही गई है। नव उत्तम पदवी मे से माडलिक राजा छोड़ शेष आठ पदवीधर मिथ्यात्वी तथा तीन वेद एव १२ बोल की
गतागति :(१) तीर्थङ्कर की आगति ३८ बोल की-वैमानिक का ३५ भेद . व पहली, दूसरी, तीसरी नरक एव ३८, गति मोक्ष की ।
(२) चक्रवर्ती की आगति ८२ बोल की-६९ जाति के देव मे से -१५ परमाधर्मी ३ किल्विषी ये १८ छोड शेष ८१ व पहली नरक एव ८२, गति १४ वोल की-सात नरक का अपर्याप्ता एव पर्याप्ता १४ (यदि ये दीक्षा लेवे तो गति देव की मोक्ष की)।
(३) वासुदेव की आगति ३२ बोल की-१२ देवलोक, 8 लोकांतिक नव गवेयक, व पहली दूसरी नरक एव ३२ । गति १४ बोल की- सात नरक का अपर्याप्ता और पर्याप्ता।
(४) बलदेव की आगति ८३ बोल की-चक्रवर्ती के ८२ बोल कहे वे और एक दूसरी नरक एव ८३ । गति ७० बोल की-वैमानिक के ३५ भेद का अपर्याप्ता और पर्याप्ता एवं ७० ।