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छ: आरो का वर्णन
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उकड़ा तथा गोधुम आसन पर बैठे हुए, सूर्य की आतापना लेते हुए, चउविहार छ्ट्ट भक्त करके इस प्रकार धर्म ध्यान मे प्रवर्तते हुए तथा चार प्रकार का शक्ल ध्यान ध्याते हुए, आठ कर्मों में से १ ज्ञानावरणीय २ दर्शनावरणीय ३ मोहनीय ४ अन्तराय इन चार घनघाती कर्म -- जो अरि अर्थात् शत्रु समान, वैरी समान, पिशाच ( झोटिग ) समान है का नाश करके ज्ञान रूपी प्रकाश का करने वाला ऐसा केवल ज्ञान केवल दर्शन आपको उत्पन्न हुआ । २६ वर्ष ५|| माह तक आप केवल ज्ञान पने विचरे । एवं सर्व ७२ वर्ष का आयुष्य भोग कर चौथे आरे के जब तीन वर्ष ८ || माह शेष रहे तब कार्तिक वदि अमावस को पावापुरी के अन्दर अकेले (बिना साधुओं के परिवार से ) मोक्ष पधारे । भगवंत के पांच कल्याणक उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में हुए । १ पहला कल्याणक दसवे प्राणत देवलोक से चल कर देवानन्दा की कोख मे जब उत्पन्न हुए तब २ दूसरे कल्याणक में गर्भ का हरण हुआ ३ तीसरे कल्याणक मे जन्म हुआ ४ चौथे कल्याणक मे दीक्षा ग्रहण की ओर पाचवे कल्याणक मे केवलज्ञान प्राप्त हुआ । स्वातिनक्षत्र मे भगवन्त मोक्ष पधारे । इस आरे मे गति पाँच जानना । श्री महावीर स्वामी मोक्ष पधारे उसी समय गौतम स्वामी को केवल ज्ञान उत्पन्न हुआ व बारह वर्ष पर्यन्त केवल प्रवर्ज्या पालकर गौतम स्वामी मोक्ष पधारे । उसी समय श्री सुधर्मा स्वामी को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ जो आठ वर्ष तक केवल प्रवर्ज्या पालकर मोक्ष पधारे। उसी समय श्री जम्बू स्वामी को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ । इन्होने ४४ वर्ष तक १ केवल प्रवर्ज्या पाली व पश्चात् मोक्ष पधारे, एवं सर्व मिलाकर श्री महावीर स्वामी के मोक्ष पधारने के बाद ६४ वर्ष तक केवल ज्ञान रहा। ६ पश्चात् विच्छेद ( नष्ट ) हो गया। इस आरे मे जन्मे हुये को पांचवे आरे में मोक्ष मिल सकता है परन्तु पांचवे आरे मे जन्मे हुए को पाँचवे आरे में मोक्ष नही मिल सकता । श्री जम्बू स्वामी के मोक्ष
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