________________
१३६
गतागति द्वार गति ४० बोल की-१५ कर्मभूमि, ५ सज्ञीतिर्यञ्च एवं २० का पर्याप्ता और अपर्याप्ता।
नवे, दशवे, ग्यारहवे और बारहवे देवलोक मे, नव | वेयक व पांच अनुत्तर विमान में आगति १५ बोल की-१५ कर्म भूमि का पर्याप्ता । गति ३० बोल की-१५ कर्मभूमि का पर्याप्ता और अपर्याप्ता एवं ३० बोल । ___ पृथ्वी, अप, वनस्पति-इन तीन मे २४३ की आगति-१०१ संमूच्छिम मनुष्य का अपर्याप्ता, १५ कर्मभूमि का अपर्याप्ता और पर्याप्ता, ३०, ४८ जाति का तिर्यञ्च, और ६४ जाति का देव (२५ भवनपति, २६ वाणव्यन्तर १० ज्योतिषी, पहला किल्विषी, पहला
और दूसरा देवलोक एवं ६४ जाति के देव) का पर्याप्ता एवं (१०१+ ३०+४+६४) २४३ बोल । गति १७९ बोल की-१०१ संमूच्छिम मनुष्य का अपर्याप्ता, १५ कर्मभूमि का अपर्याप्ता और पर्याप्ता, और ४८ जाति का तिर्यञ्च एवं १७९ बोल ।
तेजस् वायु की आगति १७६ बोल की-ऊपर समान । गति ४८ बोल की-८ जाति का तिर्यञ्च।।
तीन विकलेन्द्रिय (द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चौरिन्द्रिय) की आगति १७६ बोल की ऊपर समान गति । गति १७६ बोल की ऊपर समान ।
असंज्ञी तिर्यञ्चकी आगति १७६ बोल की-१०१ समूच्छिम मनुष्य का अपर्याप्ता, १५ कर्मभूमि का अपर्याप्ता और पर्याप्ता और ४८ जाति का तिर्यञ्च एव १७६ बोल । गति ३९५ बोल की५६ अन्तरद्वीप, ५१ जाति का देव, पहली नरक इन १०८ का अपर्याप्ता और पर्याप्ता ये २१६ और ऊपर कहे हुवे १७९ एवं ३६५ बोल।
सज्ञी तिर्यञ्च की आगति २६७ बोल की-८१ जाति का देव (६६ जाति के देवताओं में से ऊपर के चार देवलोक नव वेयक,