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वृक्षा में जानजडित समान प्रकाश वितरसा' पल के आम है
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जैनागम स्तोक संग्रह १मतंगाय २भिगा, ३तुड़ीयंगा ४दीव ५जोई ६ चितंगा।
चित्तरसा ८मणवेगा, गिहंगारा १०अनियगणाउ ।। अर्थ-१ मतङ्ग वृक्ष' जिससे मधुर फल प्राप्त होते है । २ 'भिङ्ग वृक्ष' से रत्न जड़ित सुवर्ण भोजन (पात्र) मिलते है ३ 'तुड़ियङ्गा वृक्ष' से ४६ जाति के वाद्यन्त्र (वाजित्र) के मनोहर नाद सुनाई देते है ४ 'दीव वृक्ष से' रत्नजड़ित दीपक समान प्रकाश होता है ५ जोति ( जोई ) वृक्ष रात्रि में सूर्य समान प्रकाश करते है ६, चितङ्गा वृक्ष से सुगंधी फूलो के भूषण प्राप्त होते है ७ 'चितरसा' वृक्ष से (१८ प्रकार के) मनोज्ञ भोजन मिलते है ८ 'मनोवेग' से सुवर्ण रत्न के आभूषण मिलते है ६ 'गिहगारा' वृक्ष से ४२ मंजल के महल मिल जाते है १० 'अनिय गणाउ' वृक्ष से नाक के श्वास से उड जावे ऐसे महीन (पतले व उत्तम, वस्त्र प्राप्त होते है। ) प्रथम आरे के स्त्री पुरुष का आयुष्य जब छ: महीने का शेष रहता है, उस समय युगलिये परभव का आयुष्य वांधते है और तब युगलनी एक पुत्र-पुत्री के जोड़े को प्रसूतती ( जन्म देती ) है। उन बच्चे बच्ची का ४६ दिन तक पालन करने के बाद वे होशियार हो दम्पति बन सुखोपभोगानुभव करते हुए विचतरते है और युगल युगलनी का क्षण मात्र भी वियोग नही होता है। उनके माता-पिता एक को छीक और दूसरे को उबासी आते ही मर कर देव गति मे जाते है। (क्षेत्राधिष्ठित) देव उन युगल के -मृतक शरीर को क्षीर सागर मे प्रक्षेप कर मृत्युसस्वार ( मृत्यु - सस्कार ) करते है । गति एक देव की। ___ इस आरे में बैर नही, ईर्ष्या नही, जरा ( बुढापा ) नही, रोग नही, कुरूप नही, परिपूर्ण अग-उपांग पाकर सुख भोगते है ये सब पूर्व भव के दान पुण्यादि सत्कर्म का फल जानना ।
दूसरा आरा (२) उक्त प्रकार प्रथम आरे की समाप्ति होते ही तीन करोड़ा