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जैनागम स्तोक संग्रह अशुभ नाम कर्म चार प्रकारे वांधे.-१ काया की वक्रता २ भाषा की वक्रता ३ भाव की वक्रता ४ क्लेशकारी प्रवर्तन ।
नाम कर्म २८ प्रकारे भोगवे शुभ नाम कर्म १४ प्रकारे भोगवेः-१ इष्ट शब्द २ इष्ट रूप ३ इष्ट गध ४ इष्ट रस ५ इष्टस्पर्श ६ इष्ट गति ७ इप्ट स्थिति ८ इप्ट लावण्य ६ इष्ट यशोकीर्ति १० इष्ट उत्थान, कर्म बल वीर्य पुरुषाकार पराक्रम ११ इष्ट स्वर १२ कान्त स्वर १३ प्रिय स्वर १४ मनोज स्वर।
अशुभ नाम कर्म १४ प्रकारे भोगवे.-१ अनिष्ट शब्द २ अनिष्ट रूप ३ अनिष्ट गंध ४ अनिष्टरस ५ अनिष्ट स्पर्श ६ अनिष्ट गति ७ अनिष्ट स्थिति ८ अनिष्ट लावण्य ६ अनिष्ट यशोकीर्ति १० अनिष्ट उत्थान, कर्म बल वीर्य पुरुषाकार पराक्रम ११ हीनस्वर १२ दीन स्वर १३ अनिष्ट स्वर १४ अकान्त स्वर। ____ नाम कर्म की स्थिति जघन्य आठ मुहूर्त की उत्कृष्ट वीस करोड़ाकरोड़ सागरोपम की, अवाधाकाल दो हजार वर्ष का।
७ गोत्र कर्म का विस्तार गोत्र कर्म के दो भेदः-१ उच्च गोत्र २ नीच गोत्र । गोत्र कर्म की सोलह प्रकृति जिसमें से उच्च गोत्र की आठ प्रकृति
१ जाति विशिष्ट २ कुल विशिष्ट ३ बल विशिष्ट ४ रूप विशिष्ट ५ तप विशिष्ट ६ सूत्र विशिष्ट ७ लाभ विशिष्ट ८ ऐश्वर्य विशिष्ट ।
नीचे गोत्र की आठ प्रकृति -१ जाति विहीन २ कुल विहीन ३ बल विहीन ४ रूप विहीन ५ तप विहीन ६ सूत्र विहीन ७ लाभ विहीन ८ ऐश्वर्य विहीन ।
गोत्र कर्म सोलह प्रकारे वांधेः-ऊच गोत्र आठ प्रकारे वांधेः-१ जाति अमद (अभिमान नही करे) २ कुल अमद ३ बल अमद