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आठ कर्म की प्रकृति
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३ अनन्तानुबन्धी माया-वॉस की जड़ (मूल) समान ४ , , लोभ-कीरमची रग समान
इन चार प्रकृति की गति नरक की, स्थिति जावजीव की, घात करे समकित की। ५ अप्रत्याख्यानी क्रोध-तालाब की तीराड़ के समान
, मान-हड्डी के स्तम्भ समान ७ , , माया-मेढे के सीग समान ८ , लोभ-नगर की गटरके कर्दम (कादा) समान ।
इन चार की गति तिर्यञ्च की, स्थिति एक वर्ष की, घात करे देश व्रत की। ___६ प्रत्याख्यानावरणीय क्रोध-बालु (रेत) की भीत (दीवार) समान ।
१० प्रत्याख्यानावरणीय मान-लक्कड के स्तम्भ समान ११ , , माया-गौमूत्रिका (बेल मूतणी) समान १२ , , लोभ- गाडा का आजन (कज्जल), इन चार की गति-मनुष्य की, स्थिति चार माह की, घात करे साधुत्व की १३ सज्वलन क्रोध-जल के अन्दर लकीर समान १४ , मान-तृण के स्तम्भ समान १५ , माया- बास की छोई (छिलका) समान १६ , लोभ-पतंग तथा हल्दी के रग समान
इन चार की गति-देव की, स्थिति १५ दिनो की घात करे केवलज्ञान की।