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जैनागम स्तोक संग्रह
१६ योग द्वार : इनमें योग पावे चार :-१ औदारिक शरीर काय योग २ औदारिक मिश्र शरीर काय योग ३ कार्माण शरीर काय योग ४ व्यवहार वचन योग।
१७ उपयोग द्वार : बेइ०, त्रीइ० के अपर्याप्ति में पाँच उपयोग :-१ मतिज्ञान २ श्रु तज्ञान ३ मति अज्ञान ४ श्रु त अज्ञान ५ अचक्षु दर्शन । पर्याप्ति में तीन उपयोग-दो अज्ञान और एक अचक्षु-दर्शन । चौरि० और तिर्यञ्च समूच्छिम पचे के अपर्याप्ति में छ: उपयोग १ मतिज्ञान उपयोग २ श्रुतज्ञान उपयोग ३ मतिअज्ञान उपयोग ४ श्रु तअज्ञान उपयोग ५ चा दर्शन ६ अचक्ष दर्शन । पर्याप्ति मे चार उपयोग दो अज्ञान और दो दर्शन।
१८ आहार द्वार :आहार छ. दिशाओं का लेवे, आहार तीन प्रकार का १ ओजस् २ रोम ३ कवल और १ सचित २ अचित ३ मिश्र ।
१६ उत्पत्ति द्वार और २२ च्यवन द्वार : बेइन्द्रिय, त्रीइन्द्रिय, चौरिन्द्रिय में दश दण्डक-पाँच एके०, तीन विकले०, मनुष्य और तिर्यञ्च का आवे और दश ही दण्डक में जावे। तिर्यञ्च समूछिम पचे० में दश दण्डक का आवे-(ऊपर कहे हुए) और ज्योतिषी वैमानिक इन दो दण्डक को छोडकर शेष २२ दण्डक मे जावे।
२० स्थिति द्वार द्वीन्द्रिय की स्थिति जघन्य अन्तर मुहूर्त की उत्कृष्ट बारह वर्ष की । त्रीन्द्रिय की स्थिति ज० अ० मुहूर्त की उ० ४६ दिन की। चौरिक