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जैनागम स्तोक सग्रह
जलचरकी :- ज० अंगुल के असख्यातवे भाग, उ० एक हजार योजन की ।
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स्थलचरकी :- ज० अगुल के असंख्यातवे भाग, उ० छ. गाउ की । उरपरिसर्पकी :- ज० अंगुल के असख्यातवे भाग, उ० एक हजार योजन की !
भुजपरिसर्पकी :- ज० अंगुल के असख्यातवे भाग, उ० प्रत्येक गाउकी ।
खेचरकी :- ज० अंगुल के असंख्यातवे भाग, उ० प्रत्येक धनुष्य की । उत्तर वैक्रिय करे तो ज० अगुल के असख्यातवे भाग उ० ६०० योजन की ।
(३) संघयण द्वार : - तिर्यच गर्भज पंचे० में संघयण छः ।
संस्थान छः ।
कषाय चार ।
सज्ञा चार ।
लेश्या छः ।
इन्द्रिय पाँच ।
( ४ ) संस्थान
( ५ ) कषाय ( ६ ) संज्ञा
( ७ ) लेश्या
८ ) इन्द्रिय
( ६ ) समुद्घात
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३ मारणांतिक ४ वैक्रिय ५ तेजस् ।
समुद्घात :- - १ वेदनीय २ कषाय
पांच
(१०) संज्ञी द्वार : संज्ञी |
(११) वेद (१२) पर्याप्ति
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वेद तीन |
पर्याप्ति छः और अपर्याप्त छः ।