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जैनागम स्तोक संग्रह
उरपरि सर्प की - ज० अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट करोड पूर्व वर्ष की । भुजपरि सर्प की - ज० अर्न्तमुहूर्त उत्कृष्ट करोड़ पूर्व वर्ष की । खेचर की – ज० अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट पल्य के असंख्यातवे भाग की ।
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(२१) मरण द्वार :
समोहिया मरण, असमोहिया मरण ।
(२३) आगति द्वार : ( २४ ) गति द्वार :
तिर्यञ्च गर्भज पंचेन्द्रिय मे चार गति के जीव आवे और चार गति मे जावे ।
मनुष्य गर्भज पंचेन्द्रिय का एक दण्डक १ शरीर द्वार : - मनुष्य गर्भज में शरीर पाँच ।
२ अवगाहना द्वार:
अवसर्पिणीकाल मे मनुष्य गर्भज की अवगाहना पहला आरा लगते तीन गाउ की, उतरते आरे दो गाउ की, दूसरा आरा लगते दो गाउ की, उतरते एक गाउ की ।
तीसरे आरे लगते १ गाउ की उतरते आरे ५०० धनुष्य की ।
चौथे
५०० धनुष्य
की
सात हाथ की ।
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पांचवे
सात हाथ की
" एक हाथ की ।
छठ्ठे
एक हाथ की
,” मुड हाथ की ।
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17
11
39
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उत्सर्पिणी काल मे :
पहिले आरे लगते मुड हाथ की उतरते आरे १ हाथ की
१
दूसरे तीसरे
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11
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७ हाथ की
५०० धनुष्य की
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