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छः काय के बोल
एक हजार योजन का दल नीचे व एक हजार योजन का दल ऊपर छोड़ कर बीच मे एक लाख और २६ हजार योजन का पोलार है। इनमें 8 पाथड़ा ८ आंतरा है। जिसमे असंख्यात नारको के रहने के लिये १५ लाख नरकावास व असख्यात कुम्भिये है । इसके नीचे चार बोल-१ बीस हजार योजन का घनोदधि है २ असंख्यात योजन का धनवात है ३ असख्यात यो. तनुवात है ४ असख्यात योजन का आकाशास्तिकाय है।
४ पंकप्रभा नरक - __ इसका पिड़ एक लाख और वीस हजार योजन का है। जिसमें से एक हजार योजन का दल नीचे व एक हजार योजन का दल ऊपर छोड कर वीच मे एक लाख और अठारह हजार योजन का पोलार है। जिसमें ७ पाथडा व ६ आंतरा है। इनमें असख्यात नारकों के रहने के लिये दस लाख नरकावास व असख्यात कुम्भिये है। इसके नीचे चार बोल-१ वीस हजार योजन का घनोदधि है, २ असंख्यात योजन का घनवात है, ३ असख्यात योजन का तनुवात है, ४ असख्यात योजन का आकाशास्तिकाय है। ५ धूम्रप्रभा नरक -
इसका पिंड एक लाख अट्ठारह हजार योजन का है। जिसमें से एक हजार योजन का दल नीचे व एक हजार योजन का ऊपर छोड़ कर बीच मे एक लाख सोलह हजार योजन का पोलार है, जिनमे ५ पाथडा व ४ आतरा है। इनमे असख्यात नेरियो के लिये तीन लाख नरकावास व असख्यात कुम्भिये है। इसके नीचे चार वोल-१ बीस हजार योजन का घनोदधि है, २ असख्यात योजन का घनवात है, ३ असख्यात योजन का तनुवात है, ४ असंख्यात योजन का आकाशास्तिकाय है।