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पापास ५.७11
४ अर्ध नाराच :-जिसके एक तरफ मर्कट बन्ध व दूसरी (पड़दे) तरफ किल्ली होती है। ५ कीलिका –जिसके दो हड्डियो की सन्धि पर किल्ली लगी हुई होवे। ६ सेवार्त :-जिसकी एक हड्डी दूसरी हड्डी पर चढी हुई हो (अथवा जिसके हाड अलग-अलग हो, परन्तु चमडे से बधे हुए हो)।
४ संस्थान द्वार : सस्थान छः १ समचतु.रस्र संस्थान, २ निग्रोध परिमण्डलसंस्थान, ३ सादिक सस्थान, ४ वामन सस्थान, ५ कुब्ज सस्थान, ६ हुण्डक सस्थान ।
१ पॉव से लगाकर मस्तक तक सारा शरीर सुन्दराकार अथवा शोभायमान होवे । वह समुचतु रस्र सस्थान ।
२ जिस शरीर का नाभि से ऊपर तक का हिस्सा सुन्दराकार हो, परन्तु नीचे का भाग खराब हो, ( वट वृक्ष सदृश ) वह न्यग्रोध परिमण्डल सस्थान ।
३ जो केवल पॉव से लगा कर नाभि (या कटि) तक सुन्दर होवे, वह सादिक सस्थान ।
४ जो ठिंगना (५२ अगुल का) हो, वह वामन संस्थान ।
५ जिस शरीर के पॉव, हाथ, मस्तक ग्रीवा न्यूनाधिक हो व कुबड निकली हो और शेष अवयव सुन्दर होवे सो कुब्ज सस्थान ।
६ हुण्डक सस्थान-- रुढ,मूढ, मृगा-पुत्र, रोहवा के शरीर के समान अर्थात् सारा शरीर बेडौल होवे वह हुण्डक सस्थान।
५ कषाय द्वार · कषाय चार १ क्रोध, २ मान, ३ माया, ४ लोभ ।