________________
जैनागम स्तोक संग्रह
-
- उत्तर वैक्रिय की — जघन्य अंगुल के असंख्यातवे भाग उत्कृष्ट लक्ष योजन की ।
८८
- आहारक शरीर की – जघन्य मुंड हाथ की उत्कृष्ट एक हाथ की ।
- तेजस् शरीर व कार्माण शरीर की अवगाहना जघन्य अगुल के असंख्यातवे भाग उत्कृष्ट चौदह राजू लोक प्रमाणे तथा अपने अपने शरीर के अनुसार ।
३ संघयण द्वार : संघयण छः
१ वज्रऋषभनाराच, २ ऋषभ नाराच, ३ नाराच ४ अर्धनाराच, ५ कीलिका ६ सेवार्त ।
१ वज्रऋषभ नाराच:
वज्र अर्थात् किल्ली, ऋपभ याने लपेटने का पाटा अर्थात् ऊपर का वेष्टन, नाराच याने दोनो ओर का मर्कटबन्ध अर्थात् सन्धि और सघयन याने हाडकों का सञ्चय अर्थात् जिस शरीर मे हाडके दो पुड़ से, मर्कट बन्ध से बधे हुए हो, पाटे के समान हाडके वीटे हुए हो व तीन हाड़कों के अन्दर वज्र की किल्ली लगी हुई हो वह वज्र ऋषभ नाराच संघयन (अर्थात् जिस शरीर की हड्डियाँ, हड्डी संधियाँ व ऊपर का वेष्टन वज्र का होवे व किल्ली भी वज्र की होवे ) ।
२ ऋषभ नाराच :
ऊपर लिखे अनुसार । अन्तर | केवल इतना है कि इसमे वज्र अर्थात् किल्ली नही होती है ।
३ नाराच
जिसमे केवल दोनों तरफ मर्कट बन्ध होते है ।