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जैनागम स्तोक संग्रह
नव लोकान्तिक देव
पांचवे देवलोक में आठ कृष्ण राजी नामक पर्वत है जिसके अन्तर (वीच ) मे ये नव लोकान्तिक देव रहते है । इनके नाम इस प्रकार है:
सारस्सय, माइच्च, वग्नि, वरुण, गज तोया । तुसीया अव्वावाहा, अगीया, चेव, रीठा, य ॥
अर्थ :- १ सारस्वत लोकातिक, २ आदित्य लोकांतिक, ३ वन्हि लोकांतिक, ४ वरुण, ५ गर्दतोय ६ तुपित, ७ अव्यावाध, अगीत्य, & रिष्ट लोकातिक ।
ये नव लोकान्तिक देव जब तीर्थकर महाराज दीक्षा धारण करने वाले होते है, उस समय कानों मे कुण्डल, मस्तक पर मुकुट, बांह पर बाजुबन्द, कण्ठ मे नवसर हार पहनकर घुंघरुओ के घमकार सहित आकर इस प्रकार वोलते है - "अहो त्रिलोकनाथ! तीर्थ मार्ग प्रवर्तावो, मोक्ष मार्ग चालू करो ।" इस प्रकार वोलने का -इन देवों का जीत व्यवहार ( परम्परा से रिवाज) चला आता है ।
नव ग्रैवेयक
भद्द े, सुभद्दे, सुजाये, सुमाणसे, पीयदंसणे । सुदंसणे, अमोहे, सुपडीबद्ध, जसोधरे ॥
अर्थ :- भद्र, सुभद्र, सुजात, सुमानस, प्रियदर्शन, सुदर्शन, अमोघ, सुप्रतिवद्ध और यशोधर ये ग्रैवेयक देवो के भेद हैं. 1
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बारहवे देवलोक से ऊपर असख्यात योजन करोड़ा-करोड योजन प्रमाणे ऊचा जाने पर नव ग्रैवेयक की पहली त्रिक आती है । ये देवलोक गागर बेवड़े के समान है ।