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जैनागम स्तोक संग्रह
काय का एक, १४, वायु काय का एक, १५, वनस्पति काय का एक १६, बेइन्द्रिय का एक, १७, त्रीन्द्रिय का एक, १८, चौरिन्द्रिय का एक, १६, तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय का एक २०, मनुष्य का एक, २१, वारणव्यन्तर देव का एक, २२, ज्योतिषी का एक, २३, वैमानिक का एक, २४ ॥
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सत्तरवे बोले लेश्या छ :
१ कृष्ण लेश्या २ नील लेश्या ३ कापोत लेश्या ४ तेजोलेश्या ५ पद्म लेश्या ६ शुक्ल लेश्या ।
अट्ठारहवें बोले दृष्टि' तीन :
१ सम्यक् दृष्टि २ मिथ्यात्व दृष्टि ३ मिश्र दृष्टि ।
उन्नीसवें बोले ध्यान चार -
१ आर्त ध्यान २ रौद्र ध्यान ३ धर्म ध्यान ४ शुक्ल ध्यान । बीसवें बोले षट् (छ) द्रव्य के ३० भेद :
१ धर्मास्तिकाय के पांच भेद - १ द्रव्य से एक द्रव्य २ क्षेत्र से लोक प्रमाण ३ काल से आदि अन्त रहित ४ भाव से अवर्णी, अगधी,
१ कपाय तथा योग के साथ जीव के शुभाशुभ भाव को लेश्या कहते हैं । योग तथा कषाय रूप जल मे लहरो का होना ही लेश्या है ।
२ आत्मा अनात्मा को किसी भी तरह देखना मानना और श्रद्धा करना ही दृष्टि है ।
३ चित्त मन की एकाग्रता को ध्यान कहते है । ध्येय वस्तु के प्रति ध्याता की स्थिरता को ध्यान कहते हैं ।
४ आकारादि के बदलने पर भी पदार्थ वस्तु का कायम रहना ही द्रव्य है ।