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छः काय के बोल
एक हजार योजन का है । जिसमे से सौ योजन का दल नीचे व सौ योजन का दल ऊपर छोड कर, बीच मे आठ सौ योजन का पोलार है। जिसमे सोलह जाति के व्यन्तरो के नगर है। ये नगर कुछ तो भरत क्षेत्र के समान है। कुछ इन से बड़े महाविदेह क्षेत्र के समान हैं । और कुछ जबूद्वीप के समान बड़े है ।
पृथ्वी का सौ योजन का दल जो ऊपर है, उसमें से दश योजन का दल नीचे व दश योजन का दल ऊपर छोड कर, बीच मे अस्सी योजन का पोलार है। इनमे दस जाति के जृम्भक देव रहते है जो सध्या समय, मध्य रात्रिको, सुबह व दोपहर हुज्जा-हुज्जा ('अस्तु - अस्तु') कहते हुए फिरते रहते है (जो हसता हो वो हसते रहना, रोता हो वो रोते रहना, इस प्रकार कहते फिरते है ) अतएव हर समय ऐसा वैसा नही बोलना चाहिये । पहाड पर्वत व वृक्ष के ऊपर तथा वृक्ष के नीचे मन को जो जगह अच्छी लगे वहा ये देव आकर बैठते है तथा रहते है। । ज्योतिषी देव-इनके दश भेद : १ चन्द्रमा, २ सूर्य, ३ ग्रह, ४ नक्षत्र, ५ तारे । पॉच चर व पॉच अचर भेद से दश हुए।
ये पाच ज्योतिषी देव अढाई द्वीप मे चर है व अढाई द्वीप के बाहर अचर (स्थिर )है। इनके सबंधमे कहा है :
तारा रवि चद रिक्ख, बुह, सुका, जव, मगल सरणीआ। सग सय नेउआ, दस असिय, चउ, चउक्कसमोतिया चउसो। १।
अर्थ :- पृथ्वी से ७६० योजन ऊ चा जाने पर ताराओ का विमान आता है, पृथ्वी से ८०० योजन ऊ चा जाने पर सूर्य का विमान आता है, पृथ्वी से ८८० योजन ऊचा जाने पर चन्द्रमा का विमान आता है। पृथ्वी से ८८४ योजन ऊचा जाने पर नक्षत्र का विमाना आता है, ८८८